वाराणसी । गुरुवार को अन्तर विश्वविद्यालय अध्यापक शिक्षा केन्द्र (आई.यू.सी.टी.ई.), का.हि.वि.वि, वाराणसी के 11वें स्थापना दिवस के अवसर पर अन्तर विश्वविद्यालय अध्यापक शिक्षा केन्द्र (आई.यू.सी.टी.ई.) वाराणसी और गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद, गुजरात के संयुक्त तत्वावधान में “उच्च शिक्षा का पुनरूत्थानः विरासत और प्रगति का समन्वय” विषय पर दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन का समापन हुआ ।
दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन की शुरुआत एक ऑफलाइन एवं तीन ऑनलाइन सत्रों से हुई। इन सत्रों की अध्यक्षता व सह-अध्यक्षता प्रो. जे.एन. बालिया, जम्मू केन्द्रीय विश्वविद्यालय, प्रो. रमेशधर द्विवेदी, यू.पी. कालेज, वाराणसी, प्रो. ई. राम गणेश भारतीडासन विश्वविद्यालय, तमिलनाडु, प्रो. पी. विश्वानन्द, महात्मा गांधी संस्थान, मारीशस, प्रो. रमाकांत मोहालिक, आर.आई.ई., भुवनेश्वर, तथा प्रो. मीनाक्षी सिंह व डॉ. पंकज सिंह, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने की। इन चार सत्रों में कुल 48 प्रतिभागियों ने अपने शोध पत्र एवं लेख प्रस्तुत किये।
आज के प्लेनरी सत्र में तीन वक्ता प्रो. पवन कुमार शर्मा, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ, प्रो. जे.वी. मधुसूदन, हैदराबाद विश्वविद्यालय, हैदराबाद तथा प्रो. नीलिमा भगवती, एमेरिटस प्रोफेसर, गुवाहाटी विश्वविद्यालय, असम रहे।
इस सत्र की अध्यक्षता प्रो ए.सी. पांडेय, निदेशक, आई.यू.ए.सी., नई दिल्ली ने किया ।
प्रो. पवन कुमार शर्मा ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के महत्व को विस्तार में समझाया और बताया कि हमारी प्राचीन शिक्षा 64 कलाओं, 18 विद्या तथा प्राचीन ज्ञान पर आधारित थी, जिससे गुणात्मक उत्पादन संभव हुआ और इसके निर्यात से भारत सोने की चिड़िया बना। हमें पुनः वैसी ही शिक्षा अपनी मातृभाषा में लेनी चाहिए तभी हम वर्ष 2047 तक विकसित हो सकते हैं ।
सत्र के द्वितीय वक्ता प्रो. जे.वी. मधुसूदन ने शिक्षा में तकनीकी के समायोजन पर बल दिया। जिससे कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके ।
प्रो. नीलिमा भगवती ने मानसिक स्वास्थ्य की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने बताया कि हमारी प्राचीन परंपरा में भी मानसिक स्वास्थ्य को शिक्षा के केंद्र में रखा गया था। इसे अपनी शिक्षा पद्धति में लागू करके मानसिक रूप से स्वस्थ रखा जा सकता है। इसके उपरांत पैनल डिस्कशन सत्र का आयोजन हुआ जिसकी अध्यक्षता प्रो. नीलिमा भगवती ने किया तथा पैनलिस्ट के रूप में प्रो. जे.एन. बालिया, जम्मू केन्द्रीय विश्वविद्यालय, डॉ. भानु प्रताप प्रीतम, मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी, एवं डॉ. सुप्रभा डे, एमिटी यूनिवर्सिटी, लखनऊ रहीं। इन्होंने ‘21वीं सदी की उच्च शिक्षा के शिक्षणशास्त्रीय और पाठ्यक्रम सुधार’ के बारे में विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार रखे। साथ ही, इस सत्र में प्रतिभागियों ने पैनल डिस्कशन के बाद विद्वानों से प्रश्नोत्तर भी किया।
समापन सत्र के मुख्य अतिथि प्रो. रामकुमार सिंह, बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय, धनबाद ने कहा कि शिक्षा पद्धति को स्टेट, सिचुएशन, सोर्स और पर्सन पर आधारित होना चाहिए, जब तक राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का क्रियान्वयन स्टेट, सिचुएशन, सोर्स और पर्सन (एस.एस.एस.पी.) के आधार पर नहीं किया जायेगा तब तक इसके लक्ष्यों को प्राप्त करना कठिन होगा।
समापन सत्र के विशिष्ट अतिथि प्रो. जे.बी.जी. तिलक, पूर्व कुलपति, एन.आई.ई.पी.ए., नई दिल्ली ने कहा कि हम अपनी प्राचीन विश्वविद्यालय परंपरा से बहुत कुछ सीख सकते हैं, तभी स्वायत्तता आ सकती है और इसकी पहुँच लोगों तक हो सकती है ।
समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए अंतर विश्वविद्यालय अध्यापक शिक्षा केंद्र के निदेशक प्रो. पी.एन. सिंह ने कहा कि हमें अपनी जड़ों से जुड़ने की जरूरत है। हमें अपने बच्चों को मातृभाषा में शिक्षित करना होगा। शिक्षक को अच्छे मेंटर के रूप में काम करना होगा। उन्होंने सम्मलेन से जुड़े समस्त साथियों को शुभकामना दी।
इस कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन प्रो. महेश नारायण दीक्षित ने किया। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम दो महान व्यक्तित्व महामना एवं महात्मा की संस्थाओं के सामंजस्य का कार्यक्रम था इसके साथ ही उन्होंने सभी को गूजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद, गुजरात आने का आमंत्रण दिया। साथ ही, इस समापन सत्र में अन्तर विश्वविद्यालय अध्यापक शिक्षा केन्द्र , का.हि.वि.वि, वाराणसी एवं बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय, धनबाद के बीच शोध और शैक्षिक आदान-प्रदान पर समझौता-पत्र पर हस्ताक्षर भी हुए।
प्रो. जे.एन. बालिया, प्रो. पवन शर्मा, मेरठ विश्वविद्यालय, प्रो. जे.वी. मधुसूदन, कुलपति, हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय, प्रो. सुनील कुमार सिंह, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, सहित महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, हरिश्चन्द्र महाविद्यालय, वसन्त महिला महाविद्यालय, राजघाट, अग्रसेन महाविद्यालय सहित अनेक शिक्षण संस्थानों के शिक्षक व अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहे।
कार्यक्रम के संयोजक डॉ. विनोद कुमार सिंह ने दो दिन के कार्यक्रम की रिपोर्ट प्रस्तुत की। वक्ताओं का परिचय डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह, संचालन डॉ. कुशाग्री सिंह, मंगलाचरण डॉ. राजा पाठक ने किया। इस महनीय कार्यक्रम में केन्द्र के शैक्षणिक व गैर-शैक्षणिक कर्मियों सहित 150 से अधिक लोगों की उपस्थिति रही।