वाराणसी। पर्यावरण संस्कृति के संरक्षण के उपलक्ष्य में काशी से अयोध्या तक की नयी कार्य योजना में एक करोड़ वृक्ष संकल्प के तहत पंचतत्व फाउंडेशन ने पंचतत्व गांव की संकल्पना की है। इस संकल्पना को भारत अध्ययन संस्थान के साथ मिलकर योजनावद्ध ढंग से लागू किया जाएगा।

इसी श्रृंखला में प्रथम कदम को व्यवहारिक स्वरूप देने के लिए वॉटर वुमन शिप्रा पाठक (वॉटर वूमेन) ने वरुणा नदी के किनारे पहले पंचतत्व गांव अकोड़ा में 50 आम का पौधारोपण किया। पंच माताओं धरती माता ( जन्मभूमि), अपनी माता (जननी),गाय माता, गंगामाता और तुलसी माता के संरक्षण की भी शपथ लेते हुए पंच वृक्ष आम,पीपल,बरगद,पाकड़ और जामुन के वृक्षों के संरक्षण की कार्य योजना बनी है। अब तक पंचतत्त्व संस्था नदियों के किनारे पौधा लगा रही थी, अब गांव के अंदर पर्यावरण की शुद्धि पर कार्य करेगी। प्रथम स्तर पर एक हज़ार गांव का लक्ष्य रखा गया है। इन गांव के चयन के शुभारंभ के लिए वाराणसी से अयोध्या का मार्ग प्रथम स्तर चुना गया है। हर गांव में १०० पौधे लगाने का लक्ष्य है। इन पौधों के संरक्षण का दायित्व गांव की पाँच माताओं को दिया जाएगा। वो अपने निरीक्षण में इन पौधों को वृक्ष बनाएँगी।

कुछ पौधे स्वात्तिक, ओम और कलश के स्वरूप में लगाये जाएँगे ताकि पर्यावरण के साथ साथ संस्कृति और धर्म का विस्तार भी हर गांव में हो सके।

इस कार्य के लिए प्रथम स्तर वाराणसी से अयोध्या ही क्यों चुना गया इसके उत्तर में वॉटर वुमन ने बोला कि वाराणसी भारत की धार्मिक राजधानी है और शिव हमारे प्रथम गुरु और आदि योगी है। उनकी नगरी से उत्तम और कोई स्थान नहीं था इस पुण्य कार्य को आरंभ करने के लिए। मुख्य अतिथि वाटर वूमेन ने कहा की गांव भारतीय संस्कृति के केंद्र है और संस्कृति के तत्व जल और वायु के सरक्षण के लिए गांव को जागृत करना आवश्यक है। पंचतत्व गांव की संकल्पना के विस्तार के लिए उन्होंने काशी, प्रयागराज, सुल्तानपुर, जौनपुर, गाजीपुर और अयोध्या को पंचतत्व क्षेत्र के रूप में विकसित करने के संकल्प को सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से व्याख्यायित किया। वॉटर वूमेन के कहा कि काशी शिव की नगरी और शिव का स्वरूप आत्मसात करने के साथ परिमार्जन की संकल्पना का है। जिनके जटाओं में गंगा मस्तक पर चंद्र और गले में विष है, प्रयागराज ज्ञान का केंद्र है जहां भारद्वाज की ज्ञान परंपरा है, सुल्तानपुर कुश की वीर भूमि है, जौनपुर परशुराम का पराक्रम क्षेत्र है, गाजीपुर ऋषि विश्वामित्र की भूमि है और अयोध्या भगवान राम की मर्यादा क्षेत्र है, उन्होंने कहा की यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां पूर्वज, देवता,परंपरा, श्रद्धा केंद्र ,मर्यादा,पराक्रम, साहस , त्याग और ज्ञान का अद्भुत संगम है। इसलिए संस्कृत के मूर्त प्रतिरूप के जीवंत सकल्पना के लिए इस पवित्र क्षेत्र को पंचतत्व क्षेत्र के रूप में प्ररीकल्पित किया गया। कहा कि हम जिस आम के पौधे लगा रहे है। वह सांस्कृतिक परंपरा में जल का प्रतीक है और मेरा पूरा जीवन जल और नदियों को समर्पित है,इसलिए वृक्ष और जल के संयुक्त प्रतीक आम के वृक्ष से संकल्प का प्रारंभ कर रहे है इसके अगले चरण में पंच तत्व शेष बचे 12 तत्वों पर कार्य करेगा और अगले वर्ष तक इसी सकलपना को पूर्ण करके इसे पंचतत्व ग्रामों के प्रतिदर्श के रूप में विकसित कर दिया जायेगा। सोचिए यदि 5000 गांव में 100 पौधे संस्कृति के संरक्षण के तौर पर लग जाये तो पर्यावरण और संस्कृति का संरक्षण किस स्तर तक हो जायेगा। पंचतत्व गांव की संकल्पना पर विमर्श करते हुए भारत अध्ययन संस्थान के निदेशक डा ऋषि रंजन सिंह ने कहा की भारत अध्ययन संस्थान के पंचतत्व गांव संकल्पना अनुसंधान निष्कर्षो को केंद्र में रख कर किए जा रहे इस कार्य को पहले चरण में 10 गांव में आरंभ किया जायेगा, इस संकल्पना को विस्तृत करके निकट भविष्य में 100 पंचतत्व गांव तक पहुंचाया जाएगा,जिसके अंतर्गत अगले दस वर्षो में 100 चयनित गांव 10 लाख वृक्ष लगाए जाएंगे इसके साथ ही कृषि कुटीर उधोग की कार्यशाला के नवयुवकों को प्रशिक्षित कर आर्थिक सहयोग के माध्यम से इस सकल्प को पूर्ण करने के लिए लोगो को प्रेरित किया जायेगा। अध्यक्षता करते हुए सत्येन्द्र सिंह ने कहा की ग्राम विकास यह संकल्पना संस्कृति संरक्षण का विकास माडल है जो पीढ़ियों के लिए महत्व पूर्ण है। संयोजक संजय सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया । इस अवसर पर सुधा सिंह, पुष्पा सिंह, नगीना देवी, प्रियंका , बिंदु सिंह, सीता देवी, नवीन सिंह, विजय सिंह, यशवंत सिंह, उदयभान सिंह, प्रकाश सिंह, सत्तन सिंह, अशोक सिंह, इशू सिंह , पंक्षी लाल प्रजापति, ओमप्रकाश पटेल, मेवा यादव, राणा सिंह, अशोक सिंह, गोली सिंह, मुन्ना सिंह, पप्पू सिंह , सम्मर सिंह, धर्मेंद्र सिंह आदि थे।

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