डॉ. विश्वनाथ प्रसाद के जयंती पर
‘सृजन का अपरूप संसार’ ( डॉ. देवीप्रसाद कुंवर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ) का हुआ लोकार्पण
वाराणसी। अर्दली बाजार एलटी कालेज स्थित राजकीय जिला पुस्तकालय में विद्याभूषण डॉ विश्वनाथ प्रसाद की जयंती पर साहित्यकार डॉ. देवीप्रसाद कुंवर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केंद्रित पुस्तक ‘सृजन का अपरूप संसार का लोकार्पण काशी के साहित्यकारों के बीच हुआ। पुस्तक का संपादन डॉ. सीमान्त प्रियदर्शी ने किया है। अध्यक्षता करते हुए नवगीतकार डॉ बुद्धिनाथ मिश्र ने कहा कि डॉ. विश्वनाथ प्रसाद का साहित्य को तलाशने,तराशने और परखने की अनोखी दृष्टि थी जिसमें जिंदगी की स्वाभाविकता के साथ सरलता और सहजता के दर्शन भी होते हैं। उन्होंने एक गीत सुनाया ‘ तुम क्या गये नखत दीपों के असमय अस्त हो हुए। मुख्य अतिथि कथाकार डॉ नीरजा माधव ने कहा कि विश्वनाथ जी का साहित्य जीवन के हर क्षेत्र से फूटता है। यही उनके साहित्य का सौंदर्य है। उनके साहित्य में सही जमीन, तनाव और द्वन्द है। यह द्वन्द व्यक्ति और समाज का है। कुंवर जी से मेरा परिचय उनके ठहाकों से हुआ। विशिष्ट अतिथि कहानीकार डॉ मुक्ता ने कहा कि उनके साहित्य के अनगिनत दरवाज़े हैं। जो जीवन के हर दरवाजे से गुजरता है। उनके साहित्य में सौंदर्य और प्रेम दोनों है। समीक्षक/साहित्यकार डॉ रामसुधार सिंह ने कहा कि एक बड़े रचनाकारों में जो ताकत होनी चाहिए वह विश्वनाथ जी के साहित्य में था। डॉ दया निधि मिश्र ने कहा कि विश्वनाथ जी हम लोग के बीच एक बड़ा शून्य छोड़ गये। प्रो श्रद्धानंद ने कहा कि उनके साहित्य का सौंदर्य जीवन के प्रति संवेदना और रोज की जिंदगी से पैदा हुआ है। विधायक धर्मेन्द्र सिंह ने कहा कि वे बड़े रचनाकार थे। संचालन डॉ रामसुधार सिंह ने किया। स्वागत पुस्तकाल्याध्यक्ष कंचन सिंह परिहार ने किया। धन्यवाद ज्ञापन संस्था के सचिव डॉ सीमांत प्रियदर्शी ने किया।इस अवसर पर ऋचा प्रियदर्शिनी, अशोक सिंह कवि, हिमांशु उपाध्याय, रामेश्वर त्रिपाठी, सुनील जैन, डॉ बेनी माधव, डॉ रमेश प्रताप सिंह, डॉ कविन्द्र नारायण,, डॉ आशीष चौबे, संतोष प्रीत, कुंवर सिंह कुंवर, मनोज श्रीवास्तव,डॉ जे एन गुप्ता आदि थे।