वाराणसी।लोग मृत्यु से बचने का उपाय करते देखे जाते हैं परन्तु हमें यह समझना चाहिए कि जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित रूप से होती ही है। इसलिए मृत्यु से कोई व्यक्ति नहीं बच सकता। हमें मृत्यु को सॅवारने का प्रयास करना चाहिए। यदि मृत्यु को सँवार लेंगे तो मुक्ति प्राप्त हो जाएगी। उक्त उद्गार परमाराध्य परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामीश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती 1008 ने काशी के केदार क्षेत्र के शंकराचार्य घाट पर स्थित श्रीविद्यामठ में कोरोना काल के मृतकों की सद्गति हेतु आयोजित मुक्ति कथा कहते हुए कही।

उन्होंने कहा कि जिस प्रकार किसी तरल पदार्थ को रखने के लिए बर्तन की आवश्यकता होती है उसी प्रकार जीव भी किसी न किसी शरीर में रहता है। पानी बर्तन के अनुसार आकार धारण कर लेती है इसी प्रकार जीव भी जिस शरीर में जाता है उस अनुसार आकार धारण कर लेता है। शरीर को साॅचे की तरह और मन को तरल पदार्थ की तरह से समझना चाहिए।

शंकराचार्य जी ने कहा कि जब जन्म समाप्त होगा तो मृत्यु भी समाप्त हो जाएगी। हमें अपने जन्म को समाप्त करने की आवश्यकता है। जन्म समाप्त करने का उपाय है ज्ञान। ज्ञान की अग्नि से सभी प्रकार के कर्म नष्ट हो जाते हैं और जब कर्म नष्ट हो जाते हैं तो प्रारब्ध फल नहीं बनता। जब फल भोग नहीं रहता तो फिर जन्म भी नहीं होता।

आगे कहा कि हम अलग हैं और हमसे हमारा शरीर अलग है इसे ठीक से जान लेना चाहिए। हम कभी नहीं जीते और मरते अपितु हमारा शरीर ही जीता और मरता रहता है।

आचार्य वीरेश्वर दातार ने कलश पूजन व अन्य धार्मिक कृत्य सम्पादित कराए। पं शिवचरित दुबे ने भागवत पारायण पाठ किया। पं रास शुक्ल, पं प्रशान्त तिवारी, पं नीलेश झा ने जप अनुष्ठान किया। गाजियाबाद के पं अरविन्द भारद्वाज ने शंकराचार्य जी का पादुका पूजन किया। श्रीमद्भागवत महापुराण की आरती व प्रसाद वितरण से कार्यक्रम का समापन हुआ।

उक्त जानकारी ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य जी महाराज के मीडिया प्रभारी संजय पाण्डेय ने दी है।

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