महायज्ञ में तीसरा दिन
वाराणसी । श्रीलक्ष्मीनारायण महायज्ञ में अपने प्रवचन के तीसरे दिन पूज्य श्रीलक्ष्मीप्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने श्रद्धालुओं को बताया कि उद्देश्यहीन, लक्ष्यहीन जीवन निरर्थक है। आचार्य, गुरु, संत और शास्त्रों द्वारा निर्धारित पद्धति का अनुपालन करते हुए कर्ममय जीवन हीं वास्तविक जीवन है।
जीवन में कर्म के महत्व को रेखांकित करते हुए स्वामी जी ने कहा कि कर्म का बड़ा महत्व है। जीवन की प्रत्येक घटना और परिस्थिति के पीछे हमारा कर्म हीं होता है। कर्मों का फल तत्काल हीं नहीं बल्कि जन्म जन्मांतर तक प्राप्त होता रहता है। जीवन बीमा का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जैसे वर्षों पूर्व किए गए जीवन बीमा का लाभ दुर्घटना या मृत्यु के बाद मिलता है वही हाल कर्मों का है। कर्मों का सकारात्मक या नकारात्मक फल जन्म जन्मांतर तक भोगना पड़ता है। जप, यज्ञ, पूजा, दान परोपकार आदि सत्कर्मों का भी सुफल ऐसे हीं प्राप्त होता है। शारीरिक आध्यात्मिक कर्मों का कभी त्याग नहीं करना चाहिए। शरीर की स्थिति और अवस्था कै अनुसार उनमें परिवर्तन किया जाना चाहिए। भगवान की कृपा से व्यक्ति करणीय और अकरणीय कै भेद को समझकर सत्कर्मों पर प्रेरित होता है।
नाम और रुप उपासना के भेद को भगवान शिव एवं माता पार्वती कै महर्षि अगस्त्य आश्रम पर हुई रामकथा कै उद्धरण सै समझाते हुए पूज्य स्वामी जी ने कहा कि यदि पार्वती जी ने रामकथा सुन ली होती तो महादेव द्वारा उनके त्याग और दोनों को हुए विक्षोह कै अपार कष्ट की स्थिति नहीं होती। उन्होंने कहा कि भगवान की कथा अवश्य सुननी चाहिए। इससे चित्त एवं आत्मा शांत होकर आनंद से भर उठती है और प्रवृत्तियां सकारात्मक हो जाती हैं।
मूर्तिपूजा की वैज्ञानिकता को प्रतिपादित करते हुए स्वामी जी ने बताया कि एक नाम कै कई लोग हो सकते हैं लेकिन एक रुप कै नहीं। इसीलिए नाम कै उपासक भ्रमित हो सकते हैं लेकिन स्वरूप कै उपासक कै साथ यह कभी संभव नहीं।
स्वामी जी ने कहा कि आजकल धर्मनिरपेक्ष होनै का मतलब कुछ लोग वैदिक परंपरा के धर्म और प्रक्रिया को न मानना समझते हैं। शास्त्रों के उद्धरणों सै उन्होंने स्थापित किया कि ऐसा संभव नहीं है। वह नहीं जानते कि अक्षर ब्रह्म है। यदि आप वर्णमाला कै किसी वर्ण का उच्चारण करते हैं तो आप ईश्वर का नाम लेते हैं।
श्रीवैष्णव संप्रदाय का वर्णन करते हुए स्वामी जी नै बताया कि इस संप्रदाय कि परम आचार्य भगवती लक्ष्मी जी हैं। गुरु होने के लिए दो बातें आवश्यक हैं- उनके गुरु हों और शिष्य भी हों।
स्वामीजी ने कहा कि जिनके जो आराध्य हों शिव, पार्वती, अन्नपूर्णा, हनुमान जी उनकी आराधना करैं साथ साथ अपना समर्पण सबके मूल परमात्मा श्रीमन्नारायण को निरंतर रहे यही असली पूजा और साधना है। जिससे मनुष्य का सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
केन्द्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने यज्ञस्थल पहुंचकर स्वामी जी का आशीर्वाद प्राप्त किया। उन्होंने इस महायज्ञ में सहभागिता को अपना सौभाग्य बताया।