सुखमय व्यक्तिगत या सामाजिक जीवन के लिए शांति परम आवश्यक है। दुर्भाग्यवश आज सम्पूर्ण विश्व में अशान्ति दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है। हालांकि वैश्विक शांति के निमित्त कुछ सम्पन्न राष्ट्रों के नेतृत्व में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना तो को गयी लेकिन कुछ ही वर्षों में इसकी असफलता प्रमाणित होने लगी। इसी प्रकार तमाम छोटे- बड़े क्षेत्रीय राष्ट्र समूहों का स्थायित्व भी संकटमय ही साबित हो रहा है। मानवता के गिरते स्तर तथा विश्वयुद्ध जैसी स्थिति के परिदृश्य में अघोरेश्वर भगवान राम जी द्वारा स्थापित श्री सर्वेश्वरी समूह विश्व मानवता का पथ-प्रदर्शन करने में सदा सक्षम है। सभी सर्वेश्वरी की ही संतानें हैं। इस शक्ति का ही अस्तित्व कण-कण में है। सर्वधर्म समन्वय तथा वसुधैव कुटुम्बकम् के उद्देश्य से अघोरेश्वर महाप्रभु ने जनसेवा का जो आन्दोलन चलाया वह अनवरत चलता रहेगा। मानवता के रक्षार्थ श्री सर्वेश्वरी समूह के स्थापना की नितान्त आवश्यकता थी क्योंकि मानवीय गुणों को विचारों द्वारा ही मनुष्य में प्रविष्ट कराकर उन्हें स्थायित्व दिया जा सकता है। कानून या दबाव मानवीय गुणों की स्थापना करने में सक्षम नहीं है।
मानवता ही मनुष्य का धर्म हैं और जो धर्म, मजहब मानव-मानव में भेद उत्पन्न कर विश्व-बन्धुत्व की स्थापना को आहत करता है, वह धर्म नहीं अधर्म है और मानवमात्र के लिए त्याज्य है। सर्वेश्वरी समूह का दरवाजा मानवमात्र के लिए खुला हुआ है चाहे वह किसी भी धर्म, सम्प्रदाय, जाति या वर्ग का हो। यह समूह समाज में व्याप्त कुपरम्पराओं के उन्मूलन के लिए कृत-संकल्प है। समूह द्वारा सर्वधर्म समन्वय के तहत किसी भी भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाले धर्मावलम्बियों को यह बताया जा रहा है कि सभी लोग एक ही मंच पर एक साथ बैठकर मानवता को बातें सोच सकते हैं और उसे व्यावहारिक रूप दे सकते हैं। परमपूज्य अघोरेश्वर ने कहा है “आज समाज-सुधारकों की बाढ़ आ गई है। समाज को सुधारना प्रत्येक व्यक्ति बड़ी तेजी से चाह रहा है। ऊँचे-ऊँचे स्वरों में लच्छेदार भाषणों द्वारा लोग समाज को सुधारना चाहते हैं। हो सकता है समाज को सुधारने के कई तरीकों में यह भी एक तरीका हो। लेकिन मेरी समझ से यह कोई मूल तथ्य नहीं है। आज चारों ओर शोर मचा है कि समाज में बड़ी बुराइयाँ आ गयी हैं। समाज गर्त की ओर जा रहा है। समाज को बदलो। लेकिन यह बात मेरे समझ में नहीं आती। समाज में बुराई तो है नहीं। हाँ कुछ समस्यायें हैं जो जटिल हैं। इन जटिल समस्याओं के कारण समाज को बुरा तो नहीं कहा जा सकता । यदि समाज को बुरा ही माना जाय और यह स्वीकार ही कर लें कि समाज में बुराई है तो प्रश्न है जिम्मेदार कौन है? व्यक्ति के समूह से ही समाज बनता है। दो-एक व्यक्ति स्वयं समाज नहीं हो सकते। वे किसी एक समाज के अवश्य कहे जा सकते हैं। यदि वे बुरे हैं तो हम यह नहीं कह सकते कि अमुक समाज बुरा है। दो-एक व्यक्तियों के समक्ष कोई समस्या रही होगी। उनके व्यवहार सामाजिक मानदण्डों पर खोटे उतर गये होंगे। यदि बुराई है तो सोचना चाहिए कि बुराई कौन करता है? बुराई व्यक्ति से होती है और समाज बुरा कहा जाता है। फिर समाज सुधारने का ढोंग कैसा? यदि समाज सुधारना है तो व्यक्ति खुद सुधरे। हम प्रत्येक व्यक्ति हैं। हम प्रत्येक व्यक्ति अपनी बुराइयों को स्वतः दूर कर दें। यही समाज-सुधार है” ।
अघोरेश्वर महानिर्वाण दिवस के अवसर पर माँ सर्वेश्वरी से प्रार्थना है कि मानवमात्र को सद्बुद्धि प्राप्त हो जिससे हम आपसी कटुता को दूरकर मानवता की रक्षा करें।