शैक्षणिक आदान- प्रदान हेतु म्यांमार से एक प्रतिनिधिमंडल ने सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय का दौरा किया

 

वाराणसी।देवभाषा संस्कृत दुनियां की सभी भाषाओं की जननी है, विश्व की ज्ञान राशि का सबसे अमूल्य भंडार संस्कृत शास्त्रों में ही निहित हैं।अन्य भाषाओं को समृद्ध करना है तो संस्कृत के व्यापक अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था करनी होगी।

उक्त विचार सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी एवं

महावीर धम्मविनय विश्वविद्यालय, यंगून,म्यांमार के बीच करार/समझौते (एमओयू) के विचार विमर्श हेतु संयुक्त रूप से बैठक के दौरान कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा ने व्यक्त किया।

कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा ने कहा कि दोनों देशों के बीच शैक्षणिक समझौते से अंतरराष्ट्रीय संबंधों को मजबूत करने और वैश्विक स्तर पर संस्कृत और भारतीय संस्कृति को बढावा देने के लिए मील का पत्थर सिद्ध होगा।

महावीर धम्मविनाय विश्वविद्यालय, यंगून,म्यामांर

से केंद्रीय प्राशासनिक बोर्ड के अध्यक्ष आशीष विज्जानंद के नेतृत्व में एक उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने शैक्षणिक सहयोग और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के अवसरों का पता लगाने के लिए सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति के कार्यालयीय कक्ष में दोनों कुलपतियों ने समझौते पर विचार-विमर्श कर तय किया कि शैक्षणिक सुविधाओं के लिए शिक्षकों के पारस्परिक व्याख्यानों का आयोजन , छात्रों की मूलभूत सुविधाओं, शैक्षणिक सामग्री का आदान-प्रदान तथा संस्कृति का भाव (संस्कृत,,पाली, बौद्ध दर्शन, इतिहास, पुरातत्व, सामाजिक विज्ञान, टूरिस्ट, पाण्डुलिपि अध्ययन) विषय पर दोनों संस्थान मिल कर कार्य करेंगे।

व्याख्यान श्रृंखला, सांस्कृतिक और धार्मिक अध्ययन, संस्कृत और भारतीय ज्ञान प्रणाली के क्षेत्रों में अकादमिक आदान- प्रदान, केन्द्रीय पुस्तकालय, पुस्तकालय के बीच सहयोग के माध्यम से पुस्तकालय सुविधाओं और पाण्डुलिपि संसाधनों तक पहुंच, शोधकर्ताओं का आदान प्रदान, शिक्षण-स्टाफ और छात्र, संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं का संचालन तथा शिक्षण सामग्रियों का आदान-प्रदान सहित विद्यार्थी अदला-बदली प्रोग्राम भी होगा। इसके अलावा सहयोगी अनुसंधान योजना (प्रोजेक्ट), अहम क्षेत्रों में अनुसंधान में विकास, अंतःविषय में गतिविधियां की शुरुआत, व्यावसयिक और नवाचार कार्यक्रम बढ़ाने के लिए ईवेंट और संयुक्त पहल प्रोग्राम, विद्यार्थी एवं शिक्षकों के लिए कार्यशाला का आयोजन किया जायेगा।

साथ ही विद्यार्थियों को रोजगापरक पाठ्यक्रम का

संचालन कर उन्हें सहयोग कर आत्मनिर्भर बनाना तथा

सांस्कृतिक विनिमय किया जायेगा।

कुलपति प्रो.बिहारी लाल शर्मा ने बताया कि यह संस्था और म्यांमार द्वारा रिफ्रेशर कोर्स, ट्रेनिंग

वर्कशॉप और विभिन्न बिन्दुओं पर सेमिनार आदि आयोजित किये जायेंगे। समझौते से दोनों संस्थाओं से संस्कृतियों एवं भाषा विचारों का आदान-प्रदान होगा।

म्यामांर के प्रतिनिधिमंडल के अध्यक्ष डॉ•आशीष विज्जानंद ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा के इस अति प्राचीन संस्था में जहां समृद्ध संस्कृत शास्त्र का भंडार है, समृद्ध ग्रंथालय और संरक्षित दुर्लभ पांडुलिपियों का संग्रह है, यहां से पाली सहित अन्य भाषाओं को समृद्ध बनाने की अनेकों सम्भावनाएं सुरक्षित हैं।इसलिये 234 वर्ष पुराने इस संस्था से समझौता होने पर म्यांमार के अध्यापकों और विद्यार्थियों को अनेकों लाभ की संभावना में वृद्धि होगी।आज शैक्षणिक सहयोग और साँस्कृतिक आदान- प्रदान की दिशा में सूक्ष्मता से परखा गया।

बैठक में दोनों पक्षों ने संस्कृत अध्ययन, बौद्ध दर्शन और साँस्कृतिक विरासत के क्षेत्रों में आपसी सहयोग को बढावा देने के उद्देश्य से व्यावहारिक रूप से विभिन्न आयामों पर विचार विमर्श किया गया।

कुलपति ने सभी अतिथियों का स्वागत और अभिनंदन किया।

पाली, वैदिक, पौराणिक मंगलाचरण के साथ कुलपति ने भारतीय संस्कृति के आलोक में सभी आगंतुक अतिथियों का माल्यार्पण कर अंगवस्त्र के साथ स्वागत और अभिनंदन किया गया।

उस दौरान इस संस्था के कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा के साथ महाविहार धम्मविनाय विश्वविद्यालय, यांगून, म्यांमार केंद्रीय प्रशासनिक बोर्ड के अध्यक्ष आशिष विज्जानंद, रजिस्ट्रार, आशिन डॉ. न्यावरा, प्रो-रेक्टर डॉ. हान विन,

डाॅ ह्ला टुन उर्फ राम निवास – प्रोफेसर संस्कृत, नयन जाॅ – लेक्चरर,हिन्दी विभागसहित इस संस्था से पद्मभूषण प्रो देवी प्रसाद द्विवेदी, कार्यवाहक कुलसचिव प्रो रामकिशोर त्रिपाठी, पाली विभाग के आचार्य प्रो रमेश प्रसाद, प्रो दिनेश कुमार गर्ग सहित म्यामांर के विद्यार्थियों ने भी सहभाग किया।

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