चकिया/चन्दौली। रविवार को चंद्रप्रभा साहित्यिक संस्था चकिया (चंदौली) द्वारा कड़कड़ाती ठंड के बीच दूर -दराज से आये हुए कवियों एवं श्रोताओं से खचाखच भरे आदित्य पुस्तकालय सभागार (चकिया) में रामकेश सिंह ‘केश’ स्मृति काव्य समारोह का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम का प्रारम्भ स्मृतिशेष श्री राम केश सिंह ‘केश’ जी के तैल चित्र पर उनके सुपुत्र शशि रंजन श्री कृष्ण और अथिति कवियों द्वारा माल्यार्पण के द्वारा किया गया।
काव्य समारोह का औपचारिक शुरुआत कवि डा छोटेलाल सिंह मनमीत (वाराणसी) के वाणी वन्दना से हुआ।
कार्यक्रम में प्रयागराज से पधारे जनवादी वरिष्ठ लेखक और कवि कामरेड मोहनलाल यादव को चन्द्रप्रभा साहित्यिक संस्था की तरफ से सम्मान पत्र, अंगवस्त्र और माल्यार्पण कर सम्मानित किया गया।
इसी कड़ी में डोहरी के अवधेश सिंह को सम्मान पत्र, अंगवस्त्र एवं माल्यार्पण से साहित्य प्रहरी के सम्मान से सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम में पधारे काशी के वरिष्ठ साहित्यकार सिद्धनाथ शर्मा सिद्ध, ई राम नरेश ‘नरेश’, दया शंकर प्रसाद करूंण, फतेहपुर खागा से आये भालचंद्र जी, सोनभद्र से आये नाथ सोनांचली जी, वाराणसी से आये डॉक्टर छोटेलाल सिंह ‘मनमीत’, जवाहर बाबा सहित अन्य कवियों का माल्यार्पण एवं अंगवस्त्र देकर का स्वागत सम्मान किया गया ।
डॉ.छोटेलाल सिंह मनमीत ने “न्याय बिकने लगा जाके दरबारों में लिखने वालों की जब कलम सो गयी” से मौजूदा तथाकथित कलमकारों की कथनी करनी की ओर अपने कलम को मोड़ा। सोनभद्र से पधारे कवि नाथ सोनांचली ने- “प्रीत की मटकी वही है पर समय के साथ प्यारे, वेदनाओं ने गढे हैं कुछ नए आयाम अपने” सुनाकर तमाम सामाजिक और आर्थिक विद्रूपताओं की ओर ध्यान खींचा।कामरेड मोहन लाल यादव जी ने वर्तमान परिस्थितियों में टूटते बिखरते हुए घर और बंटवारे की ओर अपनी अलग्योझी की रचना – “एक बनावई दगाबाज दूजा बनवै बेईमान।
जोखू और जवाहिर होई गए भारत-पाकिस्तान” सुनाकर सबको आर्थिक उदारीकरण और उसके उपजे प्रभाव पर सोचने को मजबूर कर दिया।
खागा फतेहपुर से पधारे कवि भालचंद्र जी ने- “ज़ख्म कितना भी गहरा हो सील जाएगा , प्रश्न कैसा जटिल हो हल भी मिल जाएगा” आशावादी दृष्टिकोण पर रचना सुनाई।
कवि ई.राम नरेश ‘नरेश’ ने गाँव गिराव की सैर कराते हुए बेहद मार्मिक गीत “बाजार में सबसे सस्ता माल खिलौना ले लो बाबूजी।” सुनाकर माहौल को बहुत भावुक कर दिया।
वरिष्ठ कवि सिद्धनाथ शर्मा ‘सिद्ध’ ने ग़ज़ल “श्याम की मीरा दीवानी हो गई , विष भरी प्याली निशानी हो गई।” से बेहद मनमोहक प्रस्तुति दी। माधुरी मिश्रा मधु वाराणसी नेबचपना गया न था और उम्र ढल गई।
जाने कैसे कब कहाँ ज़िंदगी निकल गईII
सुनाकर काव्य गति को नया आयाम दिया I
कवि मनोज द्विवेदी मधुर ने- “भेद अपने मने का तब खोला, बात हो सिद्ध तबै बोला। ” जैसे मुक्तकों से काव्य को एक अलग ऊँचाई प्रदान की।
कवियों में बन्धु पाल ‘बंधु’ ने -“रामकेश सिंह जी केश भले बिलीन हो गए, किंतु आज उनकी कहानी बोलने लगी” सुनाकर रामकेश सिंह ‘केश’ जी की तमाम स्मृतियों को ताज किया
कवि राजेंद्र प्रसाद भ्रमर ने -“चरागे अरजू नित दिल में जलाए रखिए, ख़ुद को अंतिम तलक इंसान बनाए रखिये” सुनाकर मानवता का संदेश दिया। अन्य कवियों में अलियार प्रधान जी ने “नफरत की निगाहों से मत देखो हम दो दिन के मेहमान यहाँ” सुनाकर दार्शनिकता की ओर मोड़ा तो वही कवि रामभजन पाल ने “राष्ट्रीय प्रहरी रस का करत प्रसार जगत में सावन मास आए, पति का जो मनुहार नहीं तो श्रृंगार मुझे क्यों भाए’
सुनाकर सैनिक और उसके पत्नी के मनोभावों को शब्द दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष बेचई सिंह मालिक व संचालन संस्था के सचिव हरिवंश सिंह बवाल ने किया।