रिपोर्ट राजेंद्र सोनी

 

 

बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी आदरणीय गिरधर खरे जी के सेवा निवृत्ति के अवसर पर आज उनका हार्दिक अभिनन्दन है। आज के इस हर्ष और विषाद के क्षण में उनके द्वारा लम्बे समय तक की गई विभाग की सेवा वर्तमान पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। आदरणीय खरे साहब ने अपनी शालीनता और कार्यकुशलता से अपनी एक अलग छवि बनाई है। यों तो श्री खरे जी मुख्यतः स्पोर्ट मैन रहे हैं किन्तु आप की रुचि रंगमंच में भी रही है और आपने अनेक पूर्णसम्यावधि के नाटकों के साथ साथ लघु एवं नुक्कड़ नाटकों में भी अभिनय किया है। किशोरावस्था से साहित्यिक रुचि के होने के चलते आपने काव्य लेखन भी भरपूर किया और अनेक कविसम्मेलनों में सहभागिता की है।आप एक अच्छे संगठन कर्ता भी हैं इसी का परिणाम है कि आप सेवा काल के प्रथम चरण में जब उरई जनपद जालौन मे पदस्थ थे तो वहां पर संचालित अनेक संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर रहे और फिर वर्ष 1995 में झांसी स्थानान्तरित हो कर गये तो वहां पहुंचते ही साहित्यिक संस्था संकल्प का गठन किया जो आज झांसी की प्रमुख साहित्यिक संस्था के रूप में कार्यरत है। इतना ही नहीँ दुबारा उरई स्थानांतरित होने पर वहां “पहचान ” नाम से साहित्यिक संस्था संस्थापित की। डाॅ रवीन्द्र शुक्ला जी की कविता के अनुसार ” कोई चलता पग चिन्हों पर, कोई पग चिन्ह बनाता है। पग चिन्ह बनाने वाला ही दुनिया में पूजा जाता है। ” को चरितार्थ करते हुए श्री गिरधर खरे जी ने ऐसे अनेक पग चिन्ह बनाये हैं फिर चाहे वो डिपार्टमेंट में हों या समाज में अथवा साहित्यिक दुनिया में। यही कारण है कि जब उन्होंने नौकरी के साथ सामाजिक साहित्यिक क्षेत्र में भी अपनी सक्रियता बनाये रखी तो मुक्तक सम्राट के खिताब से नबाज़े गये। सामाजिक क्षेत्र में कार्य की उत्कृष्टता का उदाहरण यह है कि उनके द्वारा गठित संस्थाये चाहे वह झांसी की संकल्प हो अथवा उरई की पहचान हो आज भी उनके मार्ग निर्देश में चल रही है, वहीं राष्ट्रीय स्तर पर गठित साहित्यिक संस्था साहित्य सभा के वर्तमान में आप मुख्य समन्वयक के पद पर पदस्थ हैं और सभा के विस्तार में आपकी महती भूमिका रही है।

मित्रों मैंने प्रारम्भ में हर्ष और विषाद का क्षण क्यों कहा आप लोग सोचते होंगे कि ऐसा क्यों कह रहें हैं तो स्पष्ट कर दूँ कि हर्ष इस बात पर कि आज के तनाव भरे वातावरण में नौकरी भी उतनी ही तनाव पूर्ण हो गयी जितनी अन्य चीजें इसलिए वे इस तनाव से मुक्त होकर पूर्णरूपेण अपने परिवार के साथ रह सकेंगे तो निश्चित रूप से इससे ज्यादा हर्ष का विषय कुछ नहीं हो सकता। हां विषाद इस बात का कि अब डिपार्टमेंट खरे जी को मिस करेगा और उनकी ईमानदारी लगनशीलता और शालीनता हमेशा बाद की पीढ़ी को प्रेरित करती रहेगी मग़र उनकी अनुपस्थिति अखरेगी। यह निश्चित रूप से विषाद का विषय है। खैर प्रकृति के नियम के अनुसार जो सेवा में आता है वह निवृत्त भी होता है। इस लिए यह एक प्रक्रिया है जो सदैव जारी रहता है।इस नियम मे सभी बंधे हुए हैं कोई इससे इतर नहीं है। बस इस अवसर पर यह जरूर है कि कौन कितनी शिद्दत से अपनी अलग छवि और पहचान बना पाता है यह देखने वाली बात है।बहरहाल आदरणीय खरे साहब ने जो मेहनत डिपार्टमेंट के लिए, साहित्य समाज और परिवार के लिए की है और इस मंजिल तक पहुंचे हैं तो इनके लिए बस यह कहना ही सर्वथा समीचीन होगा कि ” जहाँ पेड़ पर चार दाने लगें हैं।

हजारों तरफ़ से निशाने लगें हैं।

घड़ी दो घड़ी इनको पलकों में रख लो ,

यहाँ आते आते ज़माने लगें हैं। ।

पुनः खरे जी को सेवानिवृत्ति के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई वे अपने जीवन की दूसरी पारी को भी पूरी सक्रियता के साथ स्वस्थ्य रहते हुए साहित्यिक, समाजिक दायित्व का निर्वहन करते हुए व्यतीत करें। इन्हीं मंगलकामनाओं के साथ जय हिन्द

शुभेच्छु

अर्जुन सिंह चाँद झांसी

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