14वें दलाई लामा का विश्वशांति में योगदान” विषयक संगोष्ठी

 

 

वाराणसी। 14वें दलाई लामा का 88वां जन्मदिवस हर्षोल्लास के साथ केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान, सारनाथ में मनाया गया। “परम पावन 14वें दलाई लामा जी का विश्वशांति में योगदान” विषयक एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के शुरूआत में केक काटकर उनके दीर्घायु और स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना की गई तत्पश्चात परम पावन जी के जीवन पर एक लघु फिल्म दिखाई गयी। वहीं संस्थान द्वारा गोद लिए गए दो गांव पतेरवा और भैसुरी के संकड़ों गरीब परिवार के बच्चों को शिक्षण सामग्री वितरित की गयी। संगोष्ठी के वक्ता प्रो. रविप्रकाश पाण्डेय ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा और तिब्बती मनीषा परम्परा का समवेत रूप को परम पावन दलाई लामा ने पूरी दुनिया में प्रसारित किया है। तिब्बती मुक्ति आंदोलन को पूरी दुनिया में परम पावन जी ने अहिंसात्मक तरीके से उठाने का काम किया है। भिक्खू चंदिमा ने अपने वक्तव्य में कहा कि परम पावन जी का मानव कुल में उत्पन्न होना इस सदी की सबसे बड़ी उपलब्धि है। मानव कल्याण, विश्वशांति,दया, करूणा का इनसे बड़ा उदाहरण हमें देखने को नहीं मिलता है। जैसे मां अपने बच्चे से प्रेम करती है यह मैत्री है। वैसी ही मैत्री परम पावन जी पूरे प्राणी मात्र के प्रति करते हैं। उन्होंने बताया कि दुनिया में कोई एक ऐसी दवा नहीं बनी है जो सारे रोगो को ठीक कर दे।उसी प्रकार संसार में कोई एक धर्म नहीं है बल्कि सभी धर्मों का मानवता में बराबर अधिकार है। जिस भूमि से तथागत ने पूरी दुनिया में बौद्ध धर्म को फैलाया उसी करूणा और मैत्री को परम पावन जी पूरी दुनिया में फैलाने का कार्य कर रहे हैं यह सबसे बड़ी उपलब्धि है। भिक्खू रेवत महाथेरू, अध्यक्ष महाबोधि सोसायटी ने अपने संस्मरण सुनाते हुए कहा कि परम पावन जी ने इटली में 1980 के अपने भाषण में कहा था यदि पूरी दुनिया में विश्व युद्ध रूकवाना है तो बस मैत्री,मैत्री और मैत्री का भाव संपूर्ण संसार में फैलाना होगा। अध्यक्षता करते हुए संस्थान के कुलपति प्रोफेसर डब्ल्यू डी नेगी ने कहा कि

आज के समय की चुनौतियों का सामना करने के लिए हम सभी को अपने अंदर जिम्मेदारी की भावना विकसित करने की जरूरत है। हमारा काम अपने लिए नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लाभ के लिए होनी चाहिए। देश और दुनिया को शांति और मानवता का संदेश देने वाले तिब्बती आध्यात्म गुरू 14वें दलाई लामा ने इस संदेश से दुनिया को एकसूत्र में बांधना चाहा है। वे निरंतर अहिंसात्मक नीतियों का समर्थन करते रहे हैं। वे पहले नोबेल विजेता हुए हैं, जिन्होंने वैश्विक पर्यावरण की समस्याओं के प्रति अपनी चिंता जताई। कार्यक्रम का संचालन डा. रामसुधार सिंह , स्वागत कुलसचिव डॉ सुनीता चंद्रा और धन्यवाद ज्ञापन संस्थान के उपकुलसचिव डॉ हिमांशु पाण्डेय ने किया।इस अवसर पर डॉ आर के उपाध्याय,प्रो. धर्मदत्त चतुर्वेदी, प्रोफेसर जम्पा समतेन, डॉ अनुराग त्रिपाठी,प्रो. बाबूराम त्रिपाठी, प्रमोद सिंह, डॉ सुशील कुमार सिंह सहित सैकड़ों की संख्या में छात्र उपस्थित रहे।

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