वाराणसी।‌’कबीर विवेक परिवार’ द्वारा दिया जाने वाला ‘प्रो. शुकदेव सिंह स्मृति सम्मान’ इस वर्ष सुप्रसिद्ध अध्येता -आलोचक प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल को प्रदान किया जाएगा।निर्णायक समिति के सदस्यों हिंदी के ख्यातिलब्ध कवि एवं संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी, सुप्रसिद्ध लेखक राजेश जोशी और सुपरिचित कवि-आलोचक आशीष त्रिपाठी ने सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया है। न्यासी श्रीमती भगवंती सिंह ने बताया कि संत सहित्य के विशेषज्ञ ‘प्रोफेसर शुकदेव सिंह’ की स्मृति में हर वर्ष दिया जाने वाला यह सम्मान उनकी जन्मतिथि 24 जुलाई को समारोहपूर्वक वाराणसी में प्रदान किया जाता है। प्रो.शुकदेव सिंह स्मृति सम्मान के संयोजक प्रो. मनोज कुमार सिंह के अनुसार प्रो. अग्रवाल को यह सम्मान 24 जुलाई को काशी हिंदू विश्वविद्यालय परिसर में कार्यक्रम आयोजित कर प्रदान किया जाएगा। गाजीपुर में जन्मे प्रो शुकदेव सिंह संत साहित्य के अत्यंत प्रतिष्ठित अध्येता और आचार्य थे।काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर रहे शुकदेव सिंह ने संत साहित्य से सम्बन्धित अनेक पुस्तकों का लेखन और संपादन किया।उनका यह काम संत साहित्य के शोधार्थियों और अध्येताओं के लिए स्थायी महत्व रखता है। सम्मानित लेखक प्रो.पुरुषोत्तम अग्रवाल मध्यकालीन साहित्य के गंभीर अध्येता – आलोचक के रूप में ख्यात हैं।वे मध्यकाल के उन चुनिंदा अध्येताओं में हैं जिनके काम ने मध्यकालीन साहित्य को देखने समझने की एक नई दृष्टि निर्मित की है और एकेडमिया में नई बहसों को जन्म दिया है।मध्यकालीन साहित्य पर केंद्रित उनके अत्यंत महत्वपूर्ण अकादमिक काम पुस्तक रूप में प्रकाशित हो चुके हैं।कबीर: साखी और सबद,अकथ कहानी प्रेम की:कबीर की कविता और उनका समय,पद्मावत: मानुष प्रेम भयऊ बैकुंठी इनमें प्रमुख हैं।उन्होंने हाल ही में श्यामसुंदर दास की कबीर ग्रंथावली का परिमार्जित पाठ भी तैयार किया है।वे हिंदी के गिने चुने अध्येताओं में हैं जिनके काम ने मध्यकालीन साहित्य और उसके पाठ को हिंदीतर समाजों में भी प्रतिष्ठित किया है।प्रो.अग्रवाल की मध्यकालीन साहित्य पर केंद्रित पुस्तकें कबीर: द लाइफ एंड वर्क ऑफ अर्ली मॉडर्न पोएट एंड फिलोस्फर और पद्मावत: इन एपिक लव स्टोरी अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित हो चुकी हैं।

प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल मध्यकालीन साहित्य के साथ साथ समकालीन साहित्य की विविध विधाओं में भी लिखते रहे हैं।हिंदी आलोचना के क्षेत्र में भी उन्होंने अपना योगदान दिया है।संस्कृति: वर्चस्व और प्रतिरोध,तीसरा रुख,विचार का अनंत,शिवदान सिंह चौहान,निज ब्रह्म विचार उनकी प्रमुख वैचारिक कृतियां हैं।नाकोहस’ नाम से उनका एक उपन्यास,हिंदी संसार: अस्त्राखान वाया येरेवान’ नाम से एक बहुचर्चित यात्रा वृत्तांत भी प्रकाशित हो चुका है।प्रो.अग्रवाल ने कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण पुस्तकों का संपादन भी किया है- हिंदी नई चाल में ढली,निर्गुण संतों के स्वप्न,कोलाज:अशोक वाजपेई आदि।‘कौन हैं भारतमाता’ शीर्षक से जवाहर लाल नेहरू के लेखों और उनके बारे में लेखों का एक संकलन तैयार किया है।उन्होंने ‘जिज्ञासा’ नाम से एक पत्रिका का भी संपादन किया।इसके अतिरिक्त ख्यातलब्ध पत्र-पत्रिकाओं में उनके शताधिक लेख, शोधपत्र और व्याख्यान प्रकाशित हो चुके हैं।

इस बीच हिंदी समाज जिस प्रकार के उथल पुथल से गुजरा रहा है,ऐसी स्थिति में इतिहास-संस्कृति और समाजबोध को एक नए सिरे से प्रस्तावित किया जाना अनिवार्य सा हो चला है।प्रो. अग्रवाल ने इस दिशा में भी समुचित एवं गंभीर प्रयत्न किए हैं और एक जनबुद्धिजीवी के रूप में लगातार काम कर रहे हैं।

प्रो.अग्रवाल लंबे समय तक जेएनयू के भारतीय भाषा केंद्र में प्रोफेसर के रूप में काम कर चुके हैं,वे संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य भी रहे।प्रो अग्रवाल को इससे पूर्व आलोचना कर्म के लिए देवीशंकर अवस्थी सम्मान,मध्यप्रदेश साहित्य परिषद का मुकुटधर पांडेय सम्मान,अपनी पुस्तक कबीर की कविता और उनका समय के लिए राजकमल प्रकाशन कृति सम्मान और हजारी प्रसाद द्विवेदी सम्मान से नवाजा जा चुका है।

 

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