हिंदी आलोचना के सौ साल पुस्तक का लोकार्पण

 

एलटी कालेज स्थित राजकीय जिला पुस्तकालय में मंगलवार को प्रो उर्मिला मिश्रा साहित्य संगोष्ठी

 

 

वाराणसी। एलटी कालेज स्थित राजकीय जिला पुस्तकालय में मंगलवार को प्रो उर्मिला मिश्रा साहित्य संगोष्ठी में हिंदी आलोचना के सौ साल पुस्तक का लोकार्पण एवं परिचर्चा आयोजित हुआ। मुख्य वक्ता प्रो ओम प्रकाश ने कहा कि प्रकृति , मनुष्य जो कुछ करता है, उसकी पृष्ठभूमि बहुत पहले से बनने लगती है। साहित्य भी उससे अछूता नहीं है। भाषाओं के बीच से साहित्य की जोखिम उठाना एक चुनौती पर कार्य है। रचना को समरूप से देखना आलोचना का सही रास्ता है। डॉ राम सुधार सिंह ने कहा कि हिंदी आलोचना की उर्वर भूमि काशी रही है। 1921 में जब काशी हिंदू विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर कक्षाओं का पाठ्यक्रम तैयार हुआ उस समय श्यासुंदर दास और रामचंद्र शुक्ल ने कवियों पर केंद्रित समीक्षात्मक लेख लिख आलोचना साहित्य को नयी दिशा दी। बाद में हजारी प्रसाद द्विवेदी, शांतिप्रिय द्विवेदी,बच्चन सिंह, चंद्रजीत सिंह ने उसे समृद्ध किया। डॉ प्रीति त्रिपाठी ने कहा कि रचना और आलोचना पाठक को उसके जड़ों से जोड़ती है। व्यवहार में यदि देखें तो रचना के उपरांत आलोचना स्वाभाविक रूप से आ ही जाती है। आलोचना पुनर सृष्टि है। पदयात्मक आलोचना कम शब्दों में बात कहने की कला है। डॉ इंदीवर ने कहा उर्मिला की अदृश्य प्रेरणा ही इस पुस्तक के निर्माण का प्रारंभ बिंदु है। मैं उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। आलोचना लिखना और करना दोनों ही थैंकलेस जॉब है। रचना, साहित्य और कला के प्रति संसार को रचता है। स्वागत-डॉ दया निधि मिश्र, अध्यक्षता प्रो दीपक मलिक और संचालन साहित्यकार डॉ रामसुथार सिंह,धन्यवाद ज्ञापन नरेंद्र नाथ मिश्र ने किया। द्वितीय सत्र में प्रो.सुरेन्द्र प्रताप ने कहा कि बनारस हिन्दी आलोचना का गढ़ है। इस शहर ने आलोचना का माडल दिया। प्रो.श्रद्धानंद ने कहा आलोचक रचनाकार और पाठक के बीच का सूत्रधार है। प्रो.मनोज कुमार सिंह ने कहा कि आलोचना आधुनिक विधा है। स्वागत हिमांशु उपाध्याय, धन्यवाद ज्ञापन कंचन सिंह परिहार, संचालन डा.साधना भारती ने किया। इस अवसर पर ओम धीरज,चंद्रभाल सुकुमार,कविन्द्र नारायण,डा. ॠचा सिंह,डा.अरविन्द कुमार सिंह,प्रो.श्रद्धानंद, शिवानंद सिंह,डा.राघवेन्द्र नारायण, सूर्य प्रकाश मिश्र, वासुदेव ओबेराय,कंचन लता,छाया शुक्ला,डा.अशोक सिंह, शैलेन्द्र आदि थे।

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