अतिथियों में काफी उत्साह रहा और खूब सेल्फी खिंचवाई

 

 

 

वाराणसी। संस्कृतियों के माध्यम से एकजुटता का संदेश देने के उद्देश्य से काशी में होने वाली बैठक में जी-20 देशो के काशी आये प्रतिनिधियो ने गुरुवार को भगवान बुद्ध के उपदेश स्थली सारनाथ के पुरातत्व साइट व म्यूजियम का दृश्यावलोकन किया। प्रतिनिधियों को यहां के गाइडों ने पुरातत्व साइट एवं म्यूजियम में रखे पुरातत्व वस्तुओं के महत्व के संबंध में विस्तार से अवगत कराया।

अतिथियों को बतया गया कि सारनाथ प्रमुख बौद्ध एवं हिन्दू तीर्थस्थल है। ज्ञान प्राप्ति के पश्चात भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश यहीं दिया था जिसे “धर्म चक्र प्रवर्तन” का नाम दिया जाता है और जो बौद्ध मत के प्रचार-प्रसार का आरंभ था। यह स्थान बौद्ध धर्म के चार प्रमुख तीर्थों में से एक है (अन्य तीन हैं: लुम्बिनी, बोधगया और कुशीनगर)। इसके साथ ही सारनाथ को जैन धर्म एवं हिन्दू धर्म में भी महत्व प्राप्त है। जैन ग्रन्थों में इसे ‘सिंहपुर’ कहा गया है और माना जाता है कि जैन धर्म के ग्यारहवें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का जन्म यहाँ से थोड़ी दूर पर हुआ था। यहां पर सारंगनाथ महादेव का मन्दिर भी है जहां सावन के महीने में हिन्दुओं का मेला लगता है।

बताया गया कि सारनाथ में अशोक का चतुर्मुख सिंह स्तम्भ, भगवान बुद्ध का मन्दिर, धामेख स्तूप, चौखन्डी स्तूप, राजकीय संग्राहलय, जैन मन्दिर, चीनी मन्दिर, मूलंगधकुटी और नवीन विहार इत्यादि दर्शनीय हैं। भारत का राष्ट्रीय चिह्न यहीं के अशोक स्तंभ के मुकुट की द्विविमीय अनुकृति है। सन 1905 में पुरातत्व विभाग ने यहां खुदाई का काम प्रारम्भ किया। उसी समय बौद्ध धर्म के अनुयायों और इतिहास के विद्वानों का ध्यान इधर गया। वर्तमान में सारनाथ एक तीर्थ स्थल और पर्यटन स्थल के रूप में लगातार वृद्धि की ओर अग्रसर है।

दृश्यावलोकन के दौरान अतिथियों में काफी उत्साह रहा और खूब सेल्फी खिंचवाई। सारनाथ पहुंचने पर अतिथियों का स्वागत गुलाब की पंखुड़ियां उड़ा कर तथा काशी की परंपरागत तरीके से टीका कर अंगवस्त्रम भेंट कर स्वागत किया गया। सांस्कृतिक कलाकारों ने अपनी कलाओं का प्रदर्शन कर अतिथियों का स्वागत किया। जो अतिथियों को खूब भाया और देर तक खड़ा हो सांस्कृतिक कार्यक्रम का आनंद लेते रहे।

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