
भारत को जानना है तो काशी में प्रतिष्ठित इस विश्वविद्यालय का अध्ययन और मर्म समझना होगा कुलपति:- प्रो. बतिर एलिस्टेव
वाराणसी।भारत व रूस की अद्वितीय मैत्री संबध तथा परस्पर सांस्कृतिक समानता एवं एक दूसरे के प्रति समर्पण भाव है।आज विश्व में दो विद्वत शक्ति(भारत व रूस) मिलकर मानवता एवं सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित करने तथा विश्व को मानवता के पथ पर ले चलने के लिए वचनबद्ध/ कटिबद्ध है। रूस,भारत के साथ सदैव सात दशक से निरन्तर नि:स्वार्थ भाव से सहोदर भ्राता के रूप में मैत्री परम्परा को आगे बढ़ाते हुये अहर्निश खड़े हैं।
उक्त विचार सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के श्रमण विद्या संकाय के अंतर्गत आज रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन के साथ आए डेलीगेट्स का स्वागत और अभिनन्दन करते हुए कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा ने व्यक्त किया।
कुलपति प्रो शर्मा ने कहा कि
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ आए डेलीगेट्स की शैक्षणिक यात्रा दो संस्कृतियों का स्पंदन है।जहाँ उन्होंने भारतीय ज्ञान परम्परा और सनातन धर्म संस्कृति के बारे में जानकारी प्राप्त की।यह संस्था भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए स्थापित है यह भारत की आत्मा का साक्षात्कार है।जो कि भारतीय संस्कृति और ज्ञान परम्परा को विश्वभर में प्रसारित किया जा रहा है।रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन के साथ आए डेलीगेट्स के दौरे से रूस और भारत के बीच संबंधों में नई ऊर्जा का संचार हुआ है। इस दौरे से दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और शैक्षिक आदान-प्रदान को बढ़ावा मिलेगा।
रूस के राष्ट्रपति पुतिन के साथ आए डेलीगेट्स का नेतृत्व कर रहे ।
रूस में स्थित काल्मिक यूनिवर्सिटी,काल्मिकिया,एलिस्टा के कुलपति प्रो बतिर एलिस्टेव ने कहा कि दुनियां के प्राचीन शहर काशी में स्थित इस प्राचीन संस्था में आकर भारतीय ज्ञान परम्परा के आलोक में सनातन धर्म संस्कृति को जानने की उत्सुकता की पूर्ति कर अत्यन्त सुखद अनुभव हुआ। यदि भारत को जानना है तो काशी में प्रतिष्ठित इस देववाणी के केन्द्र के दर्शन को जानना होगा अर्थात् यहां के मर्म को समझना होगा।देववाणी संस्कृत के अन्दर निहित ज्ञानराशि में भारतीय संस्कृति, संस्कार एवं भारतीयता का संपूर्ण सार है। यहां आकर रूस और भारत के बीच दशकों के सम्बन्ध और प्रगाढ़ होंगे। हमारे साथ आए सभी प्रतिनिधियों ने यहां की पारंपरिक शिक्षा को सूक्ष्मता से जाना,जहां पर संस्कृत के साथ बौद्ध दर्शन, प्राकृत एवं पाली जैसे अनेक भाषाओं का अध्ययन होता है, इससे संपूर्ण संस्कृति की सहजता से उसके मर्म को समझ सकते हैं।
श्रमण विद्या संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो रमेश प्रसाद ने उस दौरान कहा कि आज रूस से डेलीगेट्स ने पाली एवं संस्कृत के परस्पर गूढ़ रहस्यों को समझा तथा इसके साथ ही दोनों संस्कृतियों को समझा।
प्रतिनिधि मंडल में वासीली किश्तानोव, प्रो जॉर्जी, प्रो तातियाना, प्रो स्वेतलाना, प्रो लॉरिसा, प्रो नतालिया सहित डेढ़ दर्जन लोगों ने भ्रमण किया।
उस दौरान संकाय प्रमुख प्रो रमेश प्रसाद के साथ सभी संकायों, कुलपति कार्यालय, पुस्तकालय एवं वेद भवन आदि को देखकर अभिभूत हुए।
उस दौरान रूस के प्रतिनिधियों का पारम्परिक रूप से वैदिक मंत्रोच्चार के साथ स्वागत और अभिनन्दन किया गया।
दोनों देशों के बीच भाषाओं का रूपांतरण शास्त्री ईअना चेर्णिया ने किया।
सहायक आचार्य डॉ लेखमणि त्रिपाठी ने संचालन किया।
इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के प्रोफेसर दयाशंकर तिवारी भी उपस्थित थे।
