
विश्वविद्यालय परिवार ने अतिथियों का वैदिक मंत्रोच्चार के साथ किया अभिनन्दन किया।
वाराणसी।देश के यशस्वी माननीय प्रधानमंत्री जी के द्वारा संपूर्ण भारत को एक सूत्र मे जोड़ने की परिकल्पना काशी तमिल संगमम है,जिसके माध्यम से संपूर्ण भारत में राष्ट्रीयता, सद्भावना स्वाभिमान जागृत हो रहा है।यह उनकी दूर दृष्टि का जागरण है।
इसके माध्यम से उत्तर और दक्षिण का भेद भाव का शमन हो रहा है,भारतीय संस्कृति, संस्कार एवं भारतीयता का भाव जन जन में पुष्पित पल्लवित हो रहा है।आज दोनों प्रदेश एक भाव में संकल्प साधना में लगे हुए हैं।
काशी तमिल संगमम का
तमिलनाडु से चल करके पावन धरा काशी में आये और आप उस काशी में उस पवित्र स्थल पर आप लोग विराजमान है जो सदियों से सारस्वत साधना में लगी हुई है। ज़ब आप तमिलनाडु से काशी आते है और काशी में भारतीय संस्कृति का संरक्षण व संवर्धन करते हुए भारत को भारत बनाते हुये उत्तर व दक्षिण के भेद को मिटाते हुये विविधता में एकता को स्थापित करते हुए अपनों को अपनों से मिलाते हुये आगे बढ़े।आप सभी लोग अनेक कठिनाइयों का सामना करते तमिलनाडु से आये है लेकिन मन में जो उत्साह और विश्वास था। जो आप लोगों ने विश्वनाथ जी और माँ गंगा का दर्शन किये है जो कि पवित्र मां कावेरी के दर्शन की अनुभूति हुई।
उक्त विचार सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा ने आज काशी तमिल संगमम 04के अतिथियों के आगमन पर पारम्परिक रूप से सम्मान करते हुए व्यक्त किया।
कुलपति प्रो शर्मा ने कहा कि काशी में ज़ब भी आनंद को प्राप्त करता है तो वह तब तक पूर्ण नहीं होता, ज़ब तक वह सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में न आये। पूरे भारत को एक बनाने के लिए जो आपका संकल्प है इतने दूर से चलकर आये है तमिल संस्कृति और उत्तर की संस्कृति दोनों परम्पराओं की जो संस्कृति है उसे कैसे आगे बढ़ाये इस बात को चरित्रार्थ करने काशी में आये है जहाँ मुक्ति व मोक्ष की प्राप्ति होती है। जहाँ आनंद की प्राप्ति होती है जहाँ अनाथों के नाथ रहते है इस लिए अनाथों के नाथ हम सभी को सनाथ बनाये। इस भाव से आप सभी यहां आये आप सभी का बहुत बहुत स्वागत करते है।
सन 1791 में इस संस्था का अभूदय हुआ जहाँ सदियों से अपने संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन में यह धरती लगी हुई थी। यह संस्था निरंतर अपने संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन में न केवल देश बल्कि देश के कोने कोने में भारतीयता का भाव जागृत कर रही है।
*देववाणी संस्कृत के मन्दिर का दर्शन*
काशी तमिल संगमम के 50 सदस्यों में सभी शिक्षक थे जिसका नेतृत्व डॉ गोविंदराजन ने कहा कि काशी को समझने के लिए देववाणी संस्कृत के इस महानिय मन्दिर में आना होगा,आज हमारी टीम ने यहां आकर अत्यन्त हर्ष और गौरव की अनुभूति कर रही है,इसमें संपूर्ण भारत की आत्मा निहित है। भारतीय संस्कृति, संस्कार का यह अनुकरणीय और आदर्श परिसर है।
डॉ जगदीशन, डॉ भूपीनंदन कॉर्डिनेटर साथ काशी तमिल संगमम के सदस्यों/अतिथियों ने विश्वविद्यालय परिसर में स्थित 235 वर्ष पुराना गौथिक कला से युक्त ऐतिहासिक मुख्य भवन, ज्योतिष शास्त्र का वेधशाला एवं ऐतिहासिक सरस्वती भवन पुस्तकालय में रखे दुर्लभ पांडुलिपियों को देखकर अभिभूत हुए इसके साथ पुस्तकालय के विस्तार भवन में रखे तीन लाख से अधिक दुर्लभ ग्रंथों का सूक्ष्मता से अवलोकन कर टीम का नेतृत्व कर मदुरई के ने कहा कि यह संस्था भारत, भारतीय और भारतीयता के मर्म को वैश्विक स्तर स्थापित करने वाली है।आज काशी में आकर इस संस्था के अन्दर निहित भारतीय ज्ञान परम्परा का वास्तविक दर्शन प्राप्त किया। यहां पर प्रत्येक कण में बाबा के दर्शन होते हैं।
योगसाधना केन्द्र में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच तमिलनाडु से आए हुए कशी तमिल संगमम के अतिथियों का कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा ने दुपट्टा, रुद्राक्ष का माला एवं विश्वविद्यालय से प्रकाशित पंचांग देकर स्वागत अभिनन्दन किया।
काशी तमिल संगमम 04के अतिथियों का आगमन ऐतिहासिक मुख्य भवन के समक्ष होने पर आचार्यों सहित वैदिक छात्रों के द्वारा वैदिक मंगलाचरण, पौराणिक मंगलाचरण कर इस संस्था के परम्परा का निर्वहन किया गया।
काशी तमिल संगमम 04के संयोजक डॉ कुप्पा विल्वेश स्वामी जी है।
उपस्थित जन कुलसचिव राकेश कुमार,प्रो रामपूजन पाण्डेय, प्रो जितेन्द्र कुमार, प्रो सुधाकर मिश्र, प्रो शैलेश कुमार मिश्र,
प्रो राजनाथ, प्रो रमेश प्रसाद, प्रो दिनेश कुमार गर्ग, प्रो अमित कुमार शुक्ल, डॉ विशाखा शुक्ला सहित गणमान्य अतिथियों ने सहभाग किया।
