(ऑनलाइन राष्ट्रीय वेबिनार में साहित्यकारों ने दी डॉ देवी प्रसाद कुंवर को श्रद्धांजलि )

 

 

वाराणसी/प्रयागराज। प्रो बी एन जुआल फाउंडेशन ट्रस्ट द्वारा सुप्रसिद्ध कवि एवं साहित्यकार स्व. डॉ देवीप्रसाद कुंवर पर एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। डॉ कुंवर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को याद करते हुए ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ अम्बिका प्रसाद गौड़ ने कहा कि उनका स्वभाव अनूठा था, किसी को भी अपना बना लेने की अद्भुत कला थी। उनका जाना पूरे बनारस को सूना कर गया। ऐसे लोग विरले होते हैं।

गीतकार डॉ बुद्धिनाथ मिश्र ने कहा कि कुंवर का नाम लेते ही मेरे जेहन में एक शब्द विशेषण के तौर पर उभर आता है, वह है वाग्मी। वाचाल होना अलग बात है और वाग्मी होना अलग बात। वाग्मी लक्ष्मण थे, जिन्हें शेषावतार माना जाता है। सत्तर के दशक में, पहली बार हम कब मिले थे, यह तो याद नहीं। लेकिन जब भी मिले, तब तीनो भाई एक हो गये। तब डॉक्टर विश्वनाथ प्रसाद उनके ही अग्रज नहीं, मेरे भी अग्रज और मार्गदर्शक हो गए । इन दोनों भाइयों को देखकर तुलसी रामायण के राम और लक्ष्मण की याद आना स्वाभाविक था। विश्वनाथ जी राम की तरह ही धीरोदात्त नायक और कुँवर लक्ष्मण की तरह ही पल-पल में उत्तेजित होनेवाले युवा। दोनों के बीच अनुशासन यही था कि कुंवर जब आखिरी पिच पर चढ़ जाते थे, तब विश्वनाथ जी के एक बार टोकते ही वे शांत-सौम्य बन जाते थे।

पूरे बनारस में दोनों भाइयों की प्रतिष्ठा जीवंत कलमकार के रूप में थी ।

 

भाजपा के काशी क्षेत्र के पूर्व अध्यक्ष महेश चंद श्रीवास्तव ने कहा कि डॉ देवीप्रसाद कुंवर जी साहित्यकार होने के साथ ही राजनीति की भी गहरी समझ रखते थे इसकी वजह यह थी कि अपने छात्र जीवन में वे बी.एच. यू के महामंत्री रहे। काशी की साहित्य जगत की वे अमूल्य धरोहर थे।

 

 

प्रो श्रद्धानंद ने कहा कि वे मेरे आत्मीय सखा थे। उनका जाना मेरी व्यक्तिगत क्षति है। वे बेहतरीन वक्ता, पत्रकार एवं विद्वान समीक्षक थे। डॉ कुंवर का धर्मवीर भारती, रामेश्वर शुक्ल अंचल तथा कृष्ण चंद बेरी के ऊपर किया गया कार्य अद्वितीय है।

 

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ रामसुधार सिंह ने कहा कि समकालीन साहित्य के गहन अधेता एवं चर्चित समीक्षक डॉ० देवी प्रसाद कुँवर ने अपनी पुस्तक ‘धर्मवीर भारती की काव्य साधना तथा ‘धर्मवीर भारती का कथा संसार’ ‘ में डॉ० भारती के प्रमुख काव्य कृतियों के आलोक में उनके समग्र साहित्यिक अवदान का सम्यक मूल्यांकन किया। धर्मवीर भारती के रचना संसार को समझने के लिए पुस्तक अत्यंत उपयोगी है। धर्मवीर भारती की काव्य-कृतियों के मूल्यांकन के पूर्व लेखक ने तत्कालीन सामाजिक पृष्ठभूमि का विवेचन विस्तार के साथ किया है। इसके अलावा कुंवर जी ने अन्य कई महत्वपूर्ण कृतियों का सृजन किया।

 

डॉ मुक्ता ने कहा कि डॉ देवीप्रसाद कुंवर की ‘खिड़की से झाँकती सुबह’ का मुख्य विषय प्रेम है। इस संग्रह की अधिकांश कविताएं स्मृतिशेष पत्नी को समर्पित हैं जिनमें सहयोग की उदात भावना के दर्शन होते हैं। जरूर आना शीर्षक कविता प्रेम की पराकाष्ठा को दिग्दर्शित करती है।

 

डॉ गीता अस्थाना ने कहा कि डॉक्टर साहब से मेरा परिचय उनके नाम से ही पहले था व्यक्तिगत रूप से तो मैं बहुत बाद में ही उनसे मिल पाई ।परंतु हमेशा ही प्रयागराज की महान साहित्यकारों या साहित्य सेवी की श्रंखला में उनका नाम सुनने में आता था परंतु जब मेरी उनसे मुलाकात हुई तो मुझे ज्ञात हुआ कि वह सरस्वती के साक्षात पुजारी है उनसे मिलना और उनसे बात करना उनके साथ विषय पर चर्चा करना अपने आप में परम सौभाग्य की बात है। डॉक्टर साहब ने कविता कहानी संग्रह खंडकाव्य हर विधा में हर विधा की अपनी लेखनी द्वारा जो अप्रतिम सेवा की है उसका कोई सानी नहीं है।

शिक्षाविद डॉ संतोष कु सिंह ने कहा कि वे बड़े लेखक, बेबाक वक्ता और जिंदादिल इंसान थे। आपके बड़े भाई डॉ विश्वनाथ प्रसाद जी मेरे गुरू थे, इस वजह से मैं इनके भी करीब था। आप ने विपुल और सार्थक लिखा। आपका साहित्य समाज के लिए महत्वपूर्ण है।

वरिष्ठ पत्रकार डॉ अत्रि भारद्वाज ने कहा कि डॉ कुंवर बनारस में साहित्यिक हलचल के केंद्र बिंदु थे। इसके अलावा कोई भी ऐसा अख़बार नहीं था जिसमें उनके लेख न प्रकाशित हुए हों।

डॉ सव्यसाची ने कहा कि मेरे परमपूज्य प्रातःस्मरणीय पिता डॉ.देवीप्रसाद कुँवर लोकसंवेदना के चर्चित हस्ताक्षर और साहित्य के चितेरे थे।मेरे पिताजी का पूरा जीवन ही संघर्षों में व्यतीत हुआ है।इसलिए तो उन्होंने हवा के रुख के विपरीत अपना जीवन ढाल लिया था।उन्होंने ये भी लिखा मैं जहाँ भी गिरूँगा,जहां भी रहूँगा,अपनी शीतलता बिखेरूँगा।

पत्रकार शाश्वत ने कहा कि मेरे पिता डॉ देवीप्रसाद कुंवर जी का रचना संसार काफ़ी व्यापक है। वे धर्मवीर भारती के साहित्य की समीक्षा करने वाले पहले समीक्षक हैं। इसी पर केंद्रित उनकी दो पुस्तकें प्रकाशित हुईं – धर्मवीर भारती का कथा संसार, धर्मवीर भारती का काव्य संसार। इन पुस्तकों के आने के बाद इन्हें बड़ी लोकप्रियता हासिल हुई।

 

युवा समीक्षक डॉ सीमांत प्रियदर्शी ने कहा कि मेरे पिता डॉ देवीप्रसाद कुँवार जी हिंदी साहित्य के सामर्थ्यवान रचनाकार थे । साहित्य की दुनियां में काशी और प्रयाग में समान रूप से चर्चित नाम। आपके साहित्य में जीवन को नज़दीक से महसूस करने और उसमें नई ऊर्जा उतपन्न करने की अद्भुत क्षमता है। काव्यसंग्रह ‘खिड़की से झाँकती सुबह’ में अधिकांश कविताएं जीवन के इर्द गिर्द ही घूमती हैं। इस संग्रह की पहली कविता ‘माँ’ को समर्पित है। जिसे पढ़ने पर एक सुखद क्षण की अनुभूति होती है –

“एक बहुत सुरीली धुन में

कानों में आती आवाज

एक आकर्षक आवाज

बहुत दूर जैसे कोई मछेरा

लहरों में फंसा

उदास सी तान छेड़ बैठा हो

माँ, गा रही थीं।”

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