श्री लक्ष्मीनारायण महायज्ञ चौथा दिन 

वाराणसी।श्रीलक्ष्मीनारायण महायज्ञ में शुक्रवार शामश्रीतुलसी – शालिग्राम भगवान का अद्भुत विवाह समारोह हुआ।

अद्भुत इसलिए कि आजीवन बाल ब्रह्मचारी संतगण और पीठाधीश्वर घराती और बाराती बने थे, कन्यादान कर रहे थे, सखी बनकर वधू श्रीतुलसी जी को हल्दी लगा रहे थे, विवाह गीत गा रहे थे, वर श्रीशालिग्राम भगवान को गालियां सुना रहे थे। कोई वधू के भाई बनकर वधू की मां बने संत को ईमली घोंटा रहे थे तो कोई पंडित बन वैदिक मंत्रोच्चार कर विवाह के विभिन्न चरणों को संपन्न करा रहे थे।

यह कौतुक देख मंद मंद मुस्कुरा रहे परम वीतरागी परिव्राजक संत श्रीलक्ष्मीप्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज संतों को उत्साहित कर समारोह के आनंद में वृद्धि का प्रयत्न कर रहे थे।

श्रद्धालु दीर्घा में मौजूद हजारों वृद्ध भक्तगण महिलाएं, पुरुष, बालक, बालिकाएं सभी आनंद विभोर होकर संतों द्वारा विवाह की विभिन्न विधियों में गाए जा रहे पूर्वांचल के सुमधुर विवाह गीतों और गालियों को आनंद में झूम झूम कर गा रहे थे, ढ़ोल, मंजीरे, झाल और शंख बजा रहे थे। भूतभावन भगवान शिवशंकर की पावन नगरी काशी में पतितपावनी मां गंगा के तट पर अवर्णनीय दृश्य उपस्थित था।

जैसे हीं वर श्रीशालिग्राम भगवान की डोली लेकर गिरीश मिश्र के नेतृत्व में बारातियों का दल बैंड बाजों के साथ नाचते गाते आतिशबाजी उड़ाते विवाह मंच के निकट पहुंचा, पूज्य श्री जीयर स्वामी जी के नेतृत्व में जगद्गुरू शिवपूजन शास्त्री, अयोध्या नाथ स्वामी, बैकुण्ठनाथ स्वामी, मुक्तिनाथ स्वामी आदि संतों ने‌ वैदिक मंत्रोच्चार और पुष्प वर्षा कर उनका स्वागत किया।

जगद्गुरू मारुतिकिंकर जी, पुण्डरीक शास्त्री जी, ललन जी, चंद्रकांत जी, विनोद जी आदि संत पीठाधीश्वर पूर्वांचल का प्रसिद्ध गीत गा उठे- “आपन खोरिया बहार हो जीयर स्वामी जी आवतारे दुलहा दमाद”। फिर “फुलवा के माल हम प्रेम से सजवलीं” और “दुअरे पर बाजेला बाजा, अइले वैकुण्ठ के राजा” आदि मधुर गीतों से वर और बारात का स्वागत कर द्वारपूजा की रस्म की गयी। जगद्गुरु रामानुजाचार्य श्री अयोध्यानाथ स्वामी जी ने वधू का पिता बन वर के पांव पूजे।

फिर हल्दी, ईमली घोटाईं, बरनेत की रस्में हुई और वैदिक मंत्रोच्चार और सखी बने संतों द्वारा प्रस्तुत गीतों के बीच भगवान शालिग्राम का श्रीतुलसी जी से विवाह संपन्न हुआ। जर्मनी से आए दार्शनिक एवं वैदिक शोधकर्ता जोखिम नुश्च ने तुलसी जी को हल्दी चढ़ाई। विभिन्न प्रकार के रंग बिरंगे सुगंधित पुष्पों से सुसज्जित अति सुंदर विवाह ममंडप में सिंदूर दान हुआ और संत अयोध्यानाथ स्वामी जी ने कन्यादान किया। संतों ने वधू का चुमावन किया।

वातावरण करुणामय हो उठा जब विदायी की बेला आई। करुण गीतों के बीच हो रही तुलसी जी की विदायी के समय वीतरागी संतों की आंखे अश्रुधार बहाने लगी। श्रद्धालु दीर्घा में लोग, विशेषकर महिलाएं और बालिकाएं रोती और नवदंपत्ति के सुखी जीवन के लिए मंगल गीत गाती जाती थीं।

बिहार के कैमूर जिले से आए श्रद्धालु शैलेन्द्र चौबे और रोहतास के रजनीकांत पाण्डेय और वाराणसी के पंडित जयप्रकाश चतुर्वेदी ने बताया कि उन्होंने ऐसा अद्भुत विवाह जीवन में नहीं देखा था, शरीर और आत्मा तृप्त हो गयी। सचमुच अवसि देखिए देखन जोगू।

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