श्री सर्वेश्वरी समूह पड़ाव में महिला-युवा गोष्ठी
वाराणसी। आजकल के समय-काल का दोष है या इस युग का दोष है कि हमारा श्रद्धा-विश्वास और लगाव जहां होना चाहिए, वहां से विरत हो गया है। हमारा समाज, शिक्षण-संस्थाएं, माता-पिता, भाई-बंधु सिखाने में असमर्थ हो चुके हैं। जीवन भी थोड़ा दूभर हो गया है, सबको सबकुछ चाहिए। सब चीजों को हमें समय-काल-परिस्थिति के हिसाब से समझना होगा। हम जो भी विचार सुनते हैं उसको अपने मापदंडों से तौलें।अपनी संतुष्टि के लिए हर चीज की व्याख्या हमलोग बहुत आसानी से कर देते हैं। हमें यह समझना होगा कि वास्तविकता है क्या, क्योंकि हमलोग वास्तविकता से बहुत दूर चले गए हैं, इतना दूर चले गए हैं कि यह सब चीजें समझ में आती भी नहीं हैं, बड़ा दुर्भाग्य है। आज सोचना पड़ रहा है की कोई कुछ कह रहा है तो वह सही है कि नहीं है। वह ऐसे झूठ बोलेगा तो लगेगा कि सत्य ही बोल रहा है। हम झूठ या खराब चीजों को जल्दी ग्रहण करते हैं। आज सब लोग आगे बढ़ रहे हैं, सब कुछ कर रहे हैं, लेकिन परिवार टूट रहे हैं। परिवार तो छोड़िए, आपस के संबंध टूट रहे हैं। भाई-भाई, पति-पत्नी, माता-पिता तथा बालक-बालिकाएं सब एक-दूसरे से दूर ही होते जा रहे हैं। पाश्चात्य देशों की संस्कृति से अभी तक हमलोग प्रभावित हैं। हमारे गौरव-गरिमा को बताया ही नहीं गया। अभी की पीढ़ी अर्थ के अलावा कुछ समझती भी नहीं। अर्थ से ही हम अपने भाइयों को, बहनों, माता-पिता, गुरुजनों, सज्जनों व महापुरुषों को तौल देते हैं। क्षेत्र, जाति, भाषा और रंग के नाम पर, अमीर गरीब के नाम पर हम इतने तोड़ दिए गए हैं कि एक-दूसरे से लड़ने को तैयार रहते हैं, जानवरों की तरह लड़ते रहते हैं। जानवर भी शर्मिंदा होते होंगे कि यह मनुष्य है। मनुष्य अपने-आप में परिवर्तन कर सकता है और ईश्वर को भी प्राप्त कर सकता है। अघोरेश्वर महाप्रभु ने कहा है कि जब बच्चा गर्भ में रहता है तभी से उसको कैसे रखना है, कैसे उस मां की देखभाल करना है, ऐसे-वैसे चित्र भी नहीं देखने हैं, कैसी बातों को हमें करना है, सीखना है, पढ़ना है जिससे कि आने वाली पीढ़ी तेजस्वी जन्म ले। परमपूज्य गुरुवर ने जो हमलोगों को दिया है उसकी हम अनदेखी करते हैं, उसी का परिणाम है कि समाज में इतनी गिरावट आ रही है। आज पति-पत्नी दोनों अर्थोपार्जन में इतने व्यस्त हो गए हैं कि अपनी संतति पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। जिन्होंने उन महापुरुषों का संग-साथ किया है, उनकी वाणियों का अध्ययन किया है वह उनको संभाल के निकाल लेते हैं। घर-द्वार या महल से ही घर-परिवार नहीं होता, घर-परिवार तो प्रेम भाव से बनता है। लेकिन आज एक-दूसरे को प्रताड़ित कर रहे हैं और घर को नर्क बना रखे हैं। हमारे कर्म और हमारे संस्कार यदि दूषित हो गए तो उसका परिणाम हमें भोगना ही होगा। जो अच्छे लोग हैं, जिन्होंने अच्छा कर्म किया है, जिनका जीवन आदर्श रहा, वह बहुत अच्छा जीवन जीये, संयमित, शांतिपूर्ण जीवन जीये। आप लोगों से यही प्रार्थना करूंगा कि आपलोग पढ़-लिख लिए तो कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़िये। लेकिन किसी चीज का भी यदि हमें अहंकार हो गया तो वही अहंकार उसी क्षेत्र में हमको मारता है। जिसके साथ कोई नहीं रहता उसके साथ वह ईश्वर रहता है। ‘वशीकरण एक मंत्र है तज दो वचन कठोर’। लेकिन हम लोग इतने उतावले हो गए हैं कि हममें सहनशक्ति समाप्त हो चुकी है; हम कोई भी उटपटांग कार्य करने को तैयार हो जाते हैं। शक्ति ही नहीं रहेगी तो हम सोच भी नहीं सकते, चल भी नहीं सकते, कुछ कर भी नहीं सकते। मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो अपनी कमजोरियों पर नियंत्रण कर सकता है। हमलोग जागरूक होंगे तभी दूसरों को भी जागरूक कर सकेंगे। यह विचार पूज्यपाद औघड़ बाबा गुरुपद संभव राम ने श्री सर्वेश्वरी समूह, पड़ाव वाराणसी में गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर आयोजित महिला-युवा गोष्ठी में अपने शिष्यों एवं श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए अपने आशीर्वचन में व्यक्त कीं। गोष्ठी के अन्य वक्ताओं में अध्यक्षता कर रही पटना की प्रीती सिंह, रेनू सिंह, किरन, सोनी, पीसीएस अधिकारी शिल्पी यादव, अनूप सिन्हा, पूर्णिमा, प्रियांशु प्रिया, कृष्णमोहन, तुरबान (मानस), संतोष मिश्रा, राजेश मिश्रा तथा दिव्याम्बर सिंह ने अपने विचार व्यक्त किये। नचिकेता ने भजन प्रस्तुत किया और सुष्मिता ने मंगलाचरण किया। संचालन नीतू सिंह तथा धन्यवाद ज्ञापन सर्वेश्वरी समूह के मंत्री डॉ. एसपी सिंह ने किया। इसी के साथ तीन दिवसीय गुरुपूर्णिमा महोत्सव के समापन की घोषणा की गई। विशेष उल्लेखनीय है कि इस अवसर दूर-दूर से आये हुए श्रद्धालुओं को विदाई स्वरुप प्रसाद के साथ ही एक-एक पौधे भी दिए गए| पर्यावरण के रक्षार्थ संस्था की तरफ से कुल 2500 फलदार व छायादार पौधों का वितरण किया गया