वाराणसी ।ये नया साल इसलिए नहीं है कि कोई तय तिथि है। यह परंपरा हजारों साल से चली आ रही है। पश्चिमी देशों का नया साल प्रकृति के अनुसार नहीं है। जबकि हिंदू नववर्ष प्रकृति से अगाध भाव से जुड़कर चलता है। हिंदू नववर्ष ही प्रकृति के मानकों पर फिट बैठता है। अब आपको पेड़-पौधों में बदलाव देखने को मिलेगा,पेड़ों में नए पत्ते के साथ हरियाली बढ़तीहै। आम के पेड़ों पर बौरे लगी हैं।फूलों के बाग में नवीन पुष्पों ने वातावरण को रंगबिरंगे और सुनहरे परिदृश्य से आनंद और हर्ष के परिवेश का अंकुरण प्रस्फुटित हो रहा है। बसंत के मौसम ने मानों पूरी प्रकृति को सजा दिया है। वास्तव में समझें तो हिंदू नववर्ष सृष्टि की शुरुआत होने की पहचान है।

उक्त विचार सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा ने आज भारतीय नव संवत्सर(नववर्ष)पर

सैकड़ों से अधिक वेदपाठी, बटुक और आचार्य डमरू, घंटा-घड़ियाल और शंखनाद करते हुए शोभायात्रा निकालने के दौरान व्यक्त किया।

कुलपति प्रो. शर्मा ने कहा कि आज से इसे भारतीय नव संवत्सर विक्रम संवत् 2081 शुरू हो गया है। ये नया साल इसलिए है, क्योंकि इसी समय से वनस्पतियां खिली-खिली दिखने लगती हैं। खेत-खलिहान हरे होने लगते हैं। चारों ओर सुगंधित वातावरण और प्राकृतिक सौंदर्य दिखाई देता है। इसे ही मधुमय मास कहा जाता है।इसलिए इसे ही प्राकृतिक या नैसर्गिक तौर पर नया साल माना जाता है। हिंदू जीवन पद्धति प्रकृति के अनुसार है। हर त्योहार का मौसम और उस त्योहार की विशेषता देखेंगे तो आपकी प्रकृति से जुड़ाव दिखाई देगा।

आज से हिंदू नववर्ष शुरू हो गया है। ये हिंदू कैलेंडर का 2081वां साल है। यानी अंग्रेजी कैलेंडर बनने के 57 साल पहले ही हिंदू पंचांग शुरू हो गया था, इसलिए अभी अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से हम 2024 में हैं और हिंदू कैलेंडर के मुताबिक 2080 साल बीत चुके हैं।वैसे तो जब से दुनिया शुरू हुई तभी से ज्योतिष की काल गणना चली आ रही है।

हिंदू मान्यता के अनुसार, आज से नए साल की शुरुआत हो गई है। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के सैकड़ों वेदपाठी, बटुक और आचार्यगण डमरू, घंटा-घड़ियाल और शंखनाद करते हुए शोभायात्रा का हिस्सा बनकर उन्होंने सियाराम एवं जय भोले विश्वनाथ के जयघोष से सम्पूर्ण वातावरण भक्तिमय बना दिया।

भगवा धोती-कुर्ता पहने बटुकों के हाथ में श्रीराम और ॐ लिखा पीला झंडा था। ये भव्य मार्च चौका घाट स्थित आयुर्वेद कॉलेज से लेकर विश्वविद्यालय के पूर्वी गेट, जगतगंज होते हुए, दक्षिणी गेट से मुख्यभवन के रास्ते विश्वविद्यालय कैंपस में पंचदेव मंदिर तक निकाली गई।

संयोजक प्रो अमित कुमार शुक्ल ने सभी सहभागियों के साथ जयघोष कर शोभायात्रा का प्रारम्भ किया।

यज्ञशाला में चल रहे विश्वव्यापी महायज्ञ में चारों वेदों के आधार पर आहुति देकर संस्कृत समाज और विश्व कल्याण की कामना की गई.नवरात्रि पर्व पर वेद विभाग के द्वारा माँ अंबे को पूजन प्रारम्भ किया गया।

कुलपति प्रो० बिहारी लाल शर्मा के नेतृत्व में कुलसचिव राकेश कुमार, प्रो रामकिशोर त्रिपाठी, प्रो रामपूजन पाण्डेय, प्रो हरिशंकर पाण्डेय, प्रो जितेन्द्र कुमार, प्रो सुधाकर मिश्र, प्रो हीरक कांत चक्रवर्ती,डॉ हृदय नारायण पाण्डेय, प्रो महेंद्र पाण्डेय, प्रो विजय कुमार पाण्डेय, प्रो दिनेश कुमार गर्ग, डॉ रविशंकर पाण्डेय, डॉ विजेंद्र कुमार आर्य, डॉ विजय कुमार शर्मा, डॉ पद्माकर मिश्र , अभियन्ता श्री राम विजय सिंह , कर्मचारी संघ के अध्यक्ष श्री सुशील तिवारी आदि उपस्थित रहे।

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