
‘राहुल सांकृत्यायन और मातृभाषाएं विषयक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का
वाराणसी। महापंडित राहुल सांकृत्यायन शोध एवं अध्ययन केंद्र संस्था की ओर से आभासीय पटल से हिंदी पखवाड़ा के पर
‘राहुल सांकृत्यायन और मातृभाषाएं’ विषयक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। अतिथियों का स्वागत दिल्ली से डॉ महालक्ष्मी केसरी ने वाक् देवी मां सरस्वती की वंदना कर उनका आवाहन किया।
अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्था सचिव डॉ संगीता श्रीवास्तव ने कहा कि राहुल जी ने कहा कि भाषा, विशिष्ट से कुछ लोगों की सर्जना नहीं है, बल्कि जीवंत भाषा जनता के कारखाने में ढलती है जनता द्वारा गढ़े गए शब्दों, मुहावरों और कहावतें को छोड़कर यदि साहित्य रचना का प्रयास किया गया हो तो वह साहित्य निष्पादन होता है’। अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ राम सुधार सिंह ने कहा कि स्थानीय भाषा अथवा मातृभाषा के महत्व और प्राथमिक शिक्षा में उसकी सार्थकता पर सबसे पहले ध्यान दिलाया राहुल सांकृत्यायन ने। अपनी मातृभूमि की अपनी भाषा को ,पूरी दुनियाभर घूमने और तमाम भाषाओं के पंडित राहुल,नहीं भूलते हैं।
विशिष्ट वक्ता वरिष्ठ कवि शिवकुमार पराग ने कहा कि राहुल सांकृत्यायन ने भाषाओं के समुद्र का अवगाहन किया था। वे 36 भाषाओं के जानकार थे। संस्कृत धाराप्रवाह बोल सकते थे। हिंदी में उन्होंने विपुल लेखन किया। परन्तु अपनी मातृभाषा भोजपुरी के लिए उनके मन में खास जगह थी। यही नहीं, वे जहां भी जाते थे। वहां के लोगों से घुल-मिलकर उनकी मातृभाषा सीखने की कोशिश करते थे।लखनऊ से डॉ स्नेह लता ने कहा कि राहुल सांकृत्यायन जी की भाषा उनके वैविध्यपूर्ण जीवनशैली के अनुसार रही जिसमें हिन्दी, उर्दू,फ़ारसी,सँस्कृत, भोजपुरी, मैथिली,अवधी के अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय शब्दों का प्रयोग किया।
भागलपुर से डॉ मल्लिका मंजरी ने कहा कि आचार्य राहुल सांकृत्यायन बहुभाषाविद थे। हिन्दी, संस्कृत, पालि, तिब्बती के साथ सिंहली, बर्मी, रूसी, अंग्रेजी आदि विदेशी भाषाओं के भी ज्ञाता थे। शोध छात्र उज्जवल कुमार सिंह ने कहा भाषा चिंतन की भारतीय अवधारणा एक गहन और बहुआयामी दृष्टिकोण पर आधारित है। जो भाषा को केवल संचार का माध्यम नहीं, बल्कि ज्ञान, संस्कृति, और आध्यात्मिकता के अभिव्यक्ति का साधन मानती है। साहित्यकार व आलोचक डॉ शुभा श्रीवास्तव ने बताया कि बोलिया और जनपदी भाषा का सम्मान करना राहुल जी के स्वभाव की विशेषता थी। यूएसए से डॉ निधि मिश्रा ने कहा बहुभाषाविद राहुल सांकृत्यायन की प्रारंभिक शिक्षा उर्दू में हुई। लगभग छत्तीस भाषाओँ के ज्ञाता होने के बावजूद राष्ट्रभाषा हिंदी का उनके जीवन में विशेष स्थान था। डॉ ओम प्रकाश ने कहा कि इंटलेक्चुअल जायंट’ के रूप में प्रसिद्ध, बहुआयामी व्यक्तिव के धनी, इतिहास,धर्म, दर्शन, साहित्य, पुरातत्व,भाषा तत्त्व, यात्रा वृतांत, व्याकरण, तथा बौद्ध वांग्मय के जानकर,बीसवीं शताब्दी के विलक्षण प्रतिभा से संपन्न,उत्तम कोटि के यायावर, ज्ञान पिपासु ,अदम्य इच्छा शक्ति से परिपूर्ण अन्वेषक के रूप में विश्व विख्यात, उदार एवम समतामूलक भारतीय संकृति के पोषक केदार नाथ पाण्डे वैष्णव, वेदांती आदि से होते हुए साम्यवाद और मानवतावाद के रूप मे पहुंचने पर राहुल के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए डॉ सुरेन्द्र कुमार पाठक ने कहा राहुल सांकृत्यायन एक चलते फिरते कोश थे।
इस अवसर पर साहित्य जगत के अनेक साहित्यकारों और साहित्य प्रेमियों ने फेस बुक के माध्यम से भी भाग लिया। डा रोहित कुमार, डॉ इंदू झुनझुनवाला, डॉ सुरेन्द्र प्रताप, राजश्री, डॉ ओपी पांडेय, सुवर्णा, पुष्पांजलि जी, गिरधर जी , मैथिली थे।
