उदय प्रताप कालेज के संस्थापक राजर्षि उदय प्रताप सिंह जू देव की 173 वीं जयंती समारोह का भव्य आयोजन महाविद्यालय के केन्द्रीय पुस्तकालय सभागार में किया गया। इस अवसर पर राज्यसभा सांसद तथा राष्ट्रीय महिला मोर्चा की उपाध्यक्ष माननीया दर्शना सिंह ने मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए कहा कि राजर्षि उदय प्रताप सिंह जू देव ने जिस समय उदय प्रताप कॉलेज की स्थापना किया था वह राष्ट्रीय पराधीनता के खिलाफ चलाए जा रहे राष्ट्रीय सांस्कृतिक जाकर का काल था। इसी राष्ट्रीय सांस्कृतिक जागरण की चेतना से प्रेरित होकर उन्होंने युवाओं के चरित्र निर्माण, उनके भीतर स्वाधीनता का भाव उत्पन्न करने तथा सही अर्थों में शिक्षा के प्रचार प्रसार के उद्देश से उदय प्रताप कॉलेज की स्थापना किया था। माननीया दर्शना सिंह ने अपने उद्बोधन में आगे यह भी कहा राजर्षि के संकल्पों और प्रेरणा के अनुकूल इस संस्था से निकलने वाले छात्र-छात्राओं ने राजनीति, खेल , साहित्य, कृषि आदि विभिन्न क्षेत्रों में अपना अप्रतिम योगदान करते हुए राजर्षि की कीर्ति को अमरता प्रदान किया है ।उन्होंने आगे यह भी कहा कि आज जरुरत है कि नई शिक्षा नीति के आलोक में विज्ञान और प्रौद्योगिकी एक क्षेत्र में नवाचार लाते हुए इस संस्था से निकलने वाले छात्र-छात्राएं देश और समाज का नेतृत्व करें। समारोह में अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए पूर्व शिक्षक विधायक डॉ. चेतनारायण सिंह ने बीसवीं शताब्दी के आरंभिक दौर को याद करते हुए कहा कि उदय प्रताप सिंह जू देव की मुलाकात उदय प्रताप कॉलेज की स्थापना पूर्व स्वामी विवेकानंद से इसी काशी में हुई थी। इस मुलाकात में जहां एक ओर स्वामी विवेकानंद ने काशी में रामकृष्ण मिशन की शाखा स्थापित करने की इच्छा जाहिर किया था वहीं दूसरी ओर राजर्षि की उस सोच को भी काफी बल मिला था जिसके फलस्वरूप 1909 में उदय प्रताप कॉलेज की स्थापना हुई ।माननीय चेतनारायण सिंह ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में यह भी कहा कि पिछले लगभग एक दशक से पूरे देश में राष्ट्रभक्त की जिस भावना पर बहुत बल दिया जा रहा है उसे राजर्षि ने अपनी इस संस्था की स्थापना के समय ‘दृढ़ राष्ट्रभक्ति पराक्रमश्च’ ध्येय वाक्य में व्यक्त कर दिया था।
आज के इस समारोह में बोलते हिंदी विभाग पूर्व अध्यक्ष डॉ रामसुधार सिंह ने कहा कि इतिहास का यह अनूठा संयोग रहा है कि 1950 में राजर्षि उदय प्रताप सिंह जू देव का जन्म होता है और इसी वर्ष भारतेंदु हरिश्चंद्र का भी जन्म होता है। दोनों ही मनीषी अंग्रेजी साम्राज्यवाद से भारतीय जनता की मुक्ति के लिए अपने-अपने ढंग से प्रयास कर रहे थे । भारतेंदु ने अगर बलिया के ददरी मेले में ‘भारत वर्षोंन्नति कैसे हो सकती है’ पर मौलिक चिंतन प्रस्तुत किया तो राजर्षि ने राष्ट्रीय पराधीनता से मुक्ति और देश की नवयुवकों में स्वतंत्र व्यक्तित्व के निर्माण के लिए ‘उदय प्रताप कॉलेज’ की स्थापना किया। इसी क्रम में उदय प्रताप शिक्षा समिति के सचिव न्यायमूर्ति एस.के. सिंह के संदेश का वाचन उदय प्रताप पब्लिक स्कूल की प्राचार्य संगीता कुमार ने किया।
कार्यक्रम काआरंभ मंचासीन अतिथियों द्वारा राजर्षि के चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलित करके किया गया ।अतिथियों का स्वागत प्राचार्य प्रोफेसर धर्मेंद्र कुमार सिंह ने किया ने किया । उन्होंने अपने स्वागत वक्तव्य में कहा कि राजर्षि उदय प्रताप सिंह जू देव ने ‘हीवेट क्षत्रिया स्कूल’ की स्थापना कर जिस शैक्षिक एवं सांस्कृतिक बदलाव की नींव रखी थी वह आज विभिन्न संस्थाओं के रूप में पुष्पित एवं पल्लवित हो रही है ।उन्होंने अपने स्वागत वक्तव्य में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के उस प्रसिद्ध लेख की चर्चा भी किया जिसमें आचार्य द्विवेदी ने राजर्षि उदय प्रताप सिंह जू देव के सामाजिक, साहित्यिक एवं शैक्षणिक योगदान को गहराई से याद किया है।
मंगलाचरण ‘उदय प्रताप पब्लिक स्कूल’ के छात्र द्वारा , कुलगीत ‘रानी मुरार कुमारी बालिका इंटर कॉलेज’ की छात्राओं द्वारा तथा स्वागत गीत ‘उदय प्रताप पब्लिक स्कूल’ की छात्राओं द्वारा प्रस्तुत किया गया। इसी क्रम में विभिन्न संस्थाओं के छात्र-छात्राओं ने संस्थापक राजर्षि उदय प्रताप सिंह जू देव के प्रति अपनी भावांजलि अर्पित किया। रानी मुरार कुमारी बालिका इंटर कॉलेज की अनुष्का पटेल, उदय प्रताप पब्लिक स्कूल की अक्षिता यादव, उदय प्रताप इंटर कॉलेज के यथार्थ प्रताप सिंह , उदय प्रताप डिग्री कॉलेज की अनुष्का शाही तथा आर. एस.एम.टी. की अंशिका श्रीवास्तव ने भाषण के माध्यम से अपनी भावांजलि अर्पित किया। कार्यक्रम के अंत में राजर्षि पब्लिक स्कूल की छात्राओं ने सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत कजरी गायन की मनोहारी प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर ज्ञान प्रभा सिंह ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन उदय प्रताप इंटर कॉलेज के प्राचार्य डॉक्टर रमेश प्रताप सिंह ने किया। इस अवसर पर सभी इकाइयों के अध्यापक तथा छात्र-छात्राएं बड़ी संख्या में उपस्थित रहे जिनमें प्रोफेसर एस.के. सिंह, प्रोफेसर बनारसी मिश्रा. प्रोफेसर नरेंद्र कुमार, प्रोफेसर रमेश धर द्विवेदी, प्रोफेसर मनीष कुमार सिंह, प्रोफेसर अजय कुमार सिंह, प्रोफेसर शशिकांत द्विवेदी, प्रोफेसर मनोज प्रकाश त्रिपाठी , प्रोफेसर देवेन्द्र कुमार सिंह, डा. अमन गुप्ता ,प्रोफेसर सी. पी. सिंह, डॉक्टर शरद श्रीवास्तव, डॉक्टर उपेंद्र कुमार, डा आनंद राघव चौबे विशेष उल्लेखनीय हैं।