वाराणसी ।संस्कृति भारती एवं तुलनात्मक धर्म दर्शन विभाग, सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के संयुक्त तत्वावधान में पाणिनी भवन सभागार में मंगलवार को वीरांगना लक्ष्मीबाई जन्मतिथि समारोह आयोजित किया गया।
सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के कार्यवाहक कुलपति प्रो रामपूजन पांडेय बतौर मुख्य अतिथि कहा लक्ष्मीबाई ने अपने जीवन में कई चुनौतियों का सामना किया, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।आज, हमें उनके आदर्शों को अपनाने और उनके सपनों को पूरा करने का प्रयास करना चाहिए।
हमें अपने देश की स्वतंत्रता और एकता के लिए काम करना चाहिए और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने का प्रयास करना चाहिए।
लक्ष्मीबाई की कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर हम अपने लक्ष्यों के प्रति समर्पित रहते हैं और हार नहीं मानते, तो हम कुछ भी हासिल कर सकते हैं। आइए, हम उनके आदर्शों को अपनाएं और अपने देश को एक बेहतर भविष्य की ओर ले जाएं।
नाटक के पश्चात् सम्मान समारोह में पेशवा बाळाजी बाजीराव (नाना साहेब) स्मृति सम्मान अधिवक्ता दीपक सिंह,पेशवा माधवराव सम्मान डॉ० सोहन लाल आर्य,महारानी अहिल्याबाई स्मृति सम्मान डॉ० शुभा सक्सेना,महारानी लक्ष्मीबाई स्मृति सम्मान प्रो रचना दूबे,
2025,कार्य श्री सम्मान (पत्रकारिता) श्री अजय राय,
संवत्श्री सम्मान (फिल्म प्रभाग) प्रो यशार्थ मंजुल,मणिकर्णिका ‘मनु’ स्मृति सम्मान सुश्री समृद्धि गुप्ता, पेशवा बाळाजी बाजीराव (नाना साहेब) स्मृति सम्मान प्रो माधव जनार्दन रटाटे,पेशवा बाजीराव स्मृति सम्मान रामराज शर्मा,रानी दुर्गावती स्मृति सम्मान श्रीमती अंजू सिंह,महारानी अहिल्याबाई स्मृति सम्मान डा पूजा दीक्षित,महारानी लक्ष्मीबाई स्मृति सम्मान सौ० किरण गौरे,
2023,रानी दुर्गावती स्मृति सम्मान श्रीमती रानिका जायसवाल,महारानी लक्ष्मीबाई स्मृति सम्मान श्रीमती नेहा अग्रवाल,को सम्मानित किया गया।
उक्त अवसर पर भारत विकास परिषद् के श्री प्रमोद राम त्रिपाठी ने कहा-संस्कृति भारती द्वारा लक्ष्मीबाई की जन्मतिथि पर आयोजित होने वाला कार्यक्रम काशी में प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम की नायिका को लेकर व्यापक जनजागरण करने में सफल कहा जाना चाहिए। प्रकाशित पुस्तक काशी की कन्यामणिकर्णिका….. पठनीय है और सभी को पढ़नी चाहिए।
संरक्षक दीनदयाल पाण्डेय ने कहा कि राष्ट्र रक्षा में अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले नायकों का सम्मान सर्वथा उचित है किन्तु सम्मान में किसी भी विसंगति से आयोजकों को बचना चाहिए। किसी की भी जन्मतिथि और पुण्यतिथि पर अथवा पश्चात में ही आयोजन किया जाना चाहिए। जन्मतिथि के पूर्व में किया गया आयोजन क्या उचित हो सकता है?
अध्यक्षीय उद्बोधन में रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि काशी के लिए गर्व का विषय है कि प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम की नायिका महारानी लक्ष्मीबाई का जन्म मणिकर्णिका तीर्थ परिसर में मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्दशी संवत 1892 को हुआ था। परिसर के आधार पर ही उनका नामकरण मणिकर्णिका रखा गया। जिसे परिजन प्यार से मनु कहकर पुकारते थे। लक्ष्मीबाई के विषय में पूरा देश ही नहीं अपितु जिससे उसने संघर्ष किया वे लोग भी सम्मान का भाव रखते हैं और अंग्रेजों ने उसे स्वातंत्र्य समर की नायिका माना है।
राष्ट्रीय गतिविधि सदस्य, भारत विकास परिषद प्रमोद राम त्रिपाठी,गोपी चन्द (कार्यक्रम संयोजक) संस्कृति भारती के संयोजक उपेन्द्र वि. सहस्त्रबुद्धे
महंत, संकटा मन्दिर रजनी शर्मा ने अपने विचार व्यक्त किया।
बनारस यूथ थिएटर के सौजन्य से महारानी अहिल्या बाई होलकर पर लघु नाट्य प्रस्तुति कर भाव विभोर कर दिया।
कार्यक्रम के प्रारम्भवैदिक, पौराणिक मंगलाचरण किया।
मंचस्थ अतिथियों के द्वारा मां सरस्वती, झांसी की रानी की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया।
मंचस्थ अतिथियों का अंग वस्त्रम, स्मृतिचिह्न, माल्यार्पण कर स्वागत और अभिनन्दन किया गया।
