वाराणसी। डीएवी पीजी कॉलेज के अर्थशास्त्र विभाग के छात्र मंच ईको वॉइस के तत्वावधान में एम.ए. प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों ने जैविक खेती पर विमर्श किया। छात्र रामदेव ने कहा कि जैविक खेती, खेती की पारम्परिक तरीके को अपनाकर भूमि सुधार कर उसे पुनर्जीवित करने का स्वच्छ तरीका है। इस पद्धिति से खेती करने में बिना रासायनिक खाद्यों, सिंथेटिक कीटनाशकों तथा प्रतिजैविक पदार्थों का उपयोग वर्जित होता है। इनके स्थान पर किसान स्थानीय उपलब्धता के आधार पर फसलों द्वारा छोड़े गए बायोमास का उपयोग करते हैं, जो भूमि की गुणवत्ता बढ़ाने के साथ-साथ उर्वरता बढ़ाने का भी काम करता है।

छात्र रौनक ने कहा कि आर्गेनिक वर्ल्ड रिपोर्ट 2021 के आधार पर वर्ष 2019 में विश्व का 72.3 मिलियन हेक्टयर क्षेत्र जैविक खेती हेतु उपयोग में लिया गया। जिसमें एशिया का 5.1 मिलियन हेक्टयर क्षेत्र भी शामिल है। भारत में भी पिछले कुछ वर्षों में जैविक खेती से वृद्धि हुई है। इसका मुख्य कारण अधिक रासायनिक खाद्यों एवं कीटनाशकों से होने वाला दुष्प्रभाव हैं, जिसने भारत सरकार को इस दिशा में विचार करने के लिए प्रेरित किया।

 

अन्य छात्रों ने कहा कि इन उत्पादों अथवा फसलों के उत्पादन में उपयोग होने वाले रासायनिक खाद एवं कीटनाशक की बढ़ती मात्रा दूरगामी दुष्प्रभाव का संकेत है, जिन्हें शुरुआत में नजरअंदाज किया गया। अध्यक्षता प्रो. अनूप कुमार मिश्रा ने किया। संयोजन डॉ. आहूति सिंह एवं डॉ. शालिनी सिंह ने किया। इस मौके पर डॉ. मयंक कुमार सिंह, डॉ. पारुल जैन, डॉ. उदयभान सिंह, डॉ. सिद्धार्थ सिंह आदि शामिल रहे।

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