वाराणसी। स्वामी विवेकानंद के विचार धारा के साथ बहना नही सिखाते, बल्कि धारा के विपरीत चलने का साहस भी सिखाते है। मानव सेवाधर्म को ही सबसे बड़ा धर्म मानने वाले महामानव थे स्वामी विवेकानंद। उक्त विचार गुरुवार को डीएवी पीजी कॉलेज के राजनीति विज्ञान विभाग में चल रहे राष्ट्रीय कार्यशाला के चौथे दिन वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा, बिहार के सहायक प्रोफेसर डॉ. आनन्द तिवारी ने स्वामी विवेकानंद का युवा, राष्ट्रवाद एवं आध्यात्मिकता विषय पर व्याख्यान देते हुए व्यक्त किया। भारतीय राजनीतिक चिंतक एवं उनकी वर्तमान प्रासंगिकता विषयक राष्ट्रीय कार्यशाला में बतौर मुख्य वक्ता डॉ. आनंद तिवारी ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने सभी धर्मों के अच्छे और सदविचारों को अपनाया, जिसमे इस्लाम, ईसाई, बौद्ध, जैन आदि शामिल है। इन सबसे एकत्र आध्यात्मिकता की ऐसी अलख जगाई जिससे सम्पूर्ण भारतवर्ष आज भी प्रकाशित हो रहा है। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद जैसा बनना है तो , उनके जैसा दिखना नही बल्कि उनके विचारों को आत्मसात करना होगा।

इससे पूर्व अतिथि का स्वागत कार्यक्रम संयोजक डॉ. प्रतिमा गुप्ता ने स्मृति चिन्ह एवं अंगवस्त्र प्रदान कर किया। संचालन डॉ. विकास सिंह एवं धन्यवाद डॉ. प्रियंका सिंह ने दिया। । इस अवसर पर डॉ. स्वाति सुचरिता गुप्ता, डॉ. बंदना बालचंदनानी, डॉ. गिरीश दुबे, डॉ. गौरव मिश्रा सहित बड़ी संख्या में प्रतिभागी शामिल रहे।

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