सर पर बोरा, हाथ में झोला लेकर नंगे पांव काशी की परिक्रमा करने निकले हजारों नर नारी

 

वाराणसी। अगहन मास के शुक्ल पक्ष के पूर्णिमा तिथि पर गुरुवार को भगवान शिव की नगरी काशी में हजारों नर नारी बाबा विश्वनाथ की बनाई काशी नगरी की परिक्रमा करने के लिए नंगे पांव निकल पड़े। एक दिन में काशी की परिक्रमा करने के संकल्प के साथ निकले हजारों नर नारि नंगे पांव यह यात्रा पूरी करते हैं । अंतरगृही यात्रा के लिए मणिकर्णिका घाट से संकल्प लेकर वह नाव एवं पैदल अस्सी घाट पहुंचे और वहां से जगन्नाथ मंदिर पुष्कर तालाब, रामानुज कोट, संकट मोचन, साकेत नगर, बजरडीहा, मडुवाडीह, मालगोदाम, कैंटोमेंट, नदेसर, चौकाघाट, शैलपुत्री आदिकेशव घाट होते हुए पुन: मणिकर्णिका घटकर घाट पर आकर संकल्प छुड़ाकर और बाबा विश्वनाथ का दर्शन पूजन करके यात्रा को पूरी करते हैं।

काशी प्रतिक्षण यात्रा के संयोजक उमाशंकर गुप्ता बताते हैं कि काशी में दो तरह की यात्रा होती है एक पंचक्रोशी यात्रा जो 5 दिन में काशी के बाहर बाहर यात्रा की जाती है और दूसरी अंतरगृही यात्रा है जो काशी के अंदर होते हुए पुरी की जाती है।

समाजसेवी रामयश मिश्र ने कहा अंतरगृही यात्रा में शामिल लोगों को देखकर यही लग रहा था कि सनातन परंपरा को यही लोग जीवित रखे हुए हैं। इसमें बहुत से लोग बहुत पढ़े लिखे नहीं है। गांव के हैं ।काशी के ग्रामीण क्षेत्र से है लेकिन उनके मन में सनातन संस्कृति को लेकर अर्थात श्रद्धा भाव भरा हुआ है। ठंड के इस मौसम में भी सर पर 15 -20 किलो का बोझ उठाएं नंगे पांव यह लोग यात्रा करके भारत की सनातन संस्कृति परंपरा को जीवित रखे हुए है। इनके द्वारा किए जा रहे जय घोष भोले बाबा दूर है जाना जरूर है हर हर महादेव शंभू काशी विश्वनाथ गंगे का जय घोष यह आभार दिल रहा है कि सनातन संस्कृति कभी खत्म नहीं हो सकती है क्योंकि इसके जड़ में यह लोग निरंतर लगे हुए है।

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