वाराणसी। मारवाड़ी सेवा संघ असि घाट में आयोजित सप्तदिवसीय श्री राम कथा के द्वितीय दिवस में शुक्रवार को मानसपीठ खजुरीताल मैहर से पधारे हुए जगदुरु स्वामी रामलला चार्य ने अपने व्याख्यान में कहा – हमारे देश की गुरु-शिष्य परंपरा अद्भुत है। जिसे सीखना होता है वो कहीं से भी सीख लेता है… उसे अच्छा सीखने के लिए किसी कारण की आवश्यकता नहीं होती। निवेदन करूँ सती अनुसूया जी के पुत्र दत्तात्रेय भगवान ने चौबीस गुरु बनाए और उनके गुणों का उल्लेख किया। जगद्गुरु श्री रामानंदाचार्य जी वो ऐसे आकाशधर्मा गुरु थे जिन्होंने समाज के सभी वर्ग को स्वीकार किया। उनके प्रमुख द्वादश शिष्यों ने भी अक्षय कीर्ति कमाई… और निवेदन करूँ कीर्ति-यश तो ठीक है लेकिन बात तब बने जब ठाकुर जी के दर्शन हो जाएं और ये द्वादश शिष्य ऐसे दर्शन प्राप्त महाभाग थे। जिस ब्रह्म को यति, महर्षि, योगी हजारों वर्षों की साधना में केवल एक झलक पाने की अभिलाषा से अनेक यत्न करते रहते हैं; यदि गुरु की कृपा हो जाए तो यह अति सहज हो जाता है

माता शबरी ने भगवत दर्शन की कल्पना भी नहीं की थी, लेकिन गुरु मतंग ऋषि के विश्वास के बल से उन्हें राम जी के दर्शन हुए। भारत ऐसे अनेक श्रेष्ठतम आचायों-गुरुओं की भूमि है।

जगद्गुरु जी ने अनेकानेक कथाओं का वर्णन करते हुए कहा कि हम सभी श्री मानस पीठ परिवार के सदस्य जन निश्चित ही अद्भुत सौभाग्यशाली हैं कि मां गंगा की गोद में वाराणसी की दिव्य भूमि में हम सभी को श्री मानस पीठ मानव चेरी टेबल ट्रस्ट के द्वारा आयोजित श्री राम कथा श्रवण करने का अवसर प्राप्त हो रहा है।

कथा के अंत में मानस पोथी की आरती कर भक्तों में प्रसाद का वितरण किया गया ।

इस अवसर पर रामस्वरूप पाठक, पुरुषोत्तम शर्मा, मारवाड़ी सेवा संघ के नंदकिशोर बाबूजी, समाजसेवी रामयश मिश्र, राजकुमारी शुक्ला, पुष्पा शुक्ला सहित काफी संख्या में भक्त उपस्थित थे।

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