संस्कृत के ज्ञान के बिना भारत को जानना नही है पूर्ण सम्भव:- मुख्य अतिथि 

 

सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय का 43 वां दीक्षांत समारोह सम्पन्न 

 

वाराणसी।यह विश्वविद्यालय केवल शिक्षा का केन्द्र ही नहीं बल्कि पाली, प्राकृत जैसी प्राचीन विधाओं के प्रचार-प्रसार में भी अग्रणी भूमिका निभा रहा है। यह विश्वविद्यालय ऐसा संस्थान है जहाँ न केवल भारतीय युवा अपितु अन्य देशों के छात्र एवं युवा यहाँ अध्ययनरत है। वर्तमान में यहाँ युकेन, पोलैण्ड, जर्मनी, इटली, इग्लैड, भूटान, नेपाल, स्पेन, म्यामार एवं श्रीलंका के छात्र यहाँ अध्ययनरत है। यह तथ्य अपने में गौरवपूर्ण विषय है कि यह संस्थान केवल शिक्षा ही नहीं देता अपितु भारतीय संस्कृति ज्ञान परम्परा का प्रचार-प्रसार करने में भी अग्रसर है। विश्वविद्यालय का यह प्रयास न केवल शिक्षा का विस्तार करता है बल्कि भारतीय ज्ञान परम्परा का एक वैश्विक संस्थान है।

उक्त विचार बुद्धवार को सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के मुख्य भवन में आयोजित 43 वें दीक्षान्त समारोह की अध्यक्षता करते हुये कुलाधिपति एवं राज्यपाल श्रीमती आनन्दीबेन पटेल ने कही।

उन्होंने संस्कृत एवं संस्कृति के महत्व पर विस्तार से चर्चा करते हुये कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा भारत के सुदूर प्रान्तों में संस्कृत विद्यालयों की मान्यता देकर स्थानीय लोगों को पालि, दर्शन, बौद्धदर्शन, प्राकृत, जैनदर्शन और संस्कृत विद्या में शिक्षित एवं लाभान्वित करने का काम भी कर रहा है।

विश्वविद्यालय द्वारा संचालित ऑन लाईन संस्कृत पाठ्यक्रम ज्ञान के वैश्विक प्रसार का माध्यम बन चुका है। यह प्रसन्नता का विषय है कि ऑन लाईन प्रशिक्षण केन्द्र के माध्यम से केवल संस्कृत भाषा का ज्ञान ही नहीं बल्कि कर्मकाण्ड, योग, मंदिर प्रबन्धन आदि की भी शिक्षा दी जा रही है। यह केवल भारत में ही नही बल्कि भारत के सीमा के पार अन्य देशों में भी विस्तार कर रही है। विश्वविद्यालय का यह प्रयास विश्व को वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना को साकार कर रहा हैं। संस्कृत केवल एक भाषा नहीं बल्कि ज्ञान, विज्ञान और चेतना का आधार है। यह केवल भाषा ही नहीं बल्कि युगों पहले मानवतावाद, परमाणुवाद सौरमण्डल के ग्रहों का विचरण आदि के ज्ञान से विश्व को परिचित कराया।

आज आवश्यकता है कि संस्कृत में छिपे इन रत्नों का सरल भाषा में विश्व के आम जनमानस तक पहुंचाया जाय।

उन्होंने विश्वविद्यालय के आचार्यों से आवहान करते हुये कहा कि संस्कृत की इस ज्ञान गंगा को घर-घर तक पहुंचाया जाय, संस्कृत भाषा सनातन संस्कृति के कारण विश्व को शांति का संदेश पहुंचा रहा है। यही संस्कृत है जिसने विविधता में एकता के सूत्र को पिरोया है और जिसने मानवता को “वसुधैव कुटुम्बकम्” सिखाया है। हमारे वैदिक साहित्य में निहित मंत्र सत्यमेव जयते, सर्वे भवन्ति सुखीनः एक वाक्य नही बल्कि भारत के जीवन दर्शन के आधार है। संस्कृत वह भाषा है जिसने मानव जीवन के सभी आयामों को स्पर्श किया है। हमारे ऋषि मुनियों ने इसी भाषा के माध्यम से वेदों का गान किया, उपनिषदों का चिन्तन किया, गीता का उपदेश दिया और रामायण, महाभारत के माध्यम से जीवन के आदर्श को अमर किया। यह भाषा भारत की प्राणवायु है जो हमें जड़ों से जोड़ती है। संस्कृत सभी भारतीय भाषाओं की कोषिका है, संस्कृत के बिना कोई भी भाषा अपनी उच्चता को प्राप्त नही कर सकता है इस अमूल्य धरोहर का संरक्षण एवं संवर्धन करना हम सभी की जिम्मेदारी है। विश्वविद्यालय की पाण्डुलिपि सम्पदा विश्व की धरोहर हैं। यह तथ्य विश्वविद्यालय का गौरव है कि भारत की प्राचीन विद्या विश्व को आकर्षित करता है। यह केवल ज्ञान की सम्पदा ही नहीं बल्कि भारत के मानव समाज की अमूल्य धरोहर है। भारत सरकार ने ज्ञान भारतम् मिशन आरम्भ किया है। इस मिशन के अन्तर्गत हमारी पाण्डुलिपि विरासत, संरक्षण एवं लेखन को संग्रहालयों, पुस्तकालयों, शैक्षिक संस्थानों और निजी संग्रहालयों से मिलकर एक करोड़ से अधिक पाण्डुलिपियों डिजीलाइजेशन किया जा रहा है। जिससे भारत के ज्ञान परम्परा को डिजीटल युग में पुनः जीवन्त करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने युवाओं से आवहान करते हुये कहा कि अपनी जड़ों से जुड़ कर भारतीय ज्ञान परम्परा का विस्तार करेगे तो भारत निश्चय ही विश्व गुरू बन जायेंगा। मेडल एवं उपाधि प्राप्त करने वाले छात्र छात्राओं का बधाई देते हुये कहा कि आप अपने अन्दर छिंपी अपार सम्भावनाओं की पहचान कर और आत्म निर्भर भारत के सपने

को साकार करें। पर्यावरण सरंक्षण, महिला सशक्तिकरण, नशामुक्ति अभियानों से जुड़कर सामाजिक चेतना फैलाये।

भारत सरकार के संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्रीयुत गजेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा कि संस्कृत मात्र एक भाषा ही नहीं अपितु भारत के एक गौरवपूर्ण इतिहास को समेटने वाली अमूल्य नीधि है जो समस्त भारतीयों के लिये उर्जा का स्रोत है। संस्कृत के ज्ञान के बिना भारत को जानना पूर्ण सम्भव नही है। संस्कृत विश्व की वैज्ञानिक भाषा है, संस्कृत जैसे बोली जाती है वैसे ही लिखी जाती है।

उन्होंने विश्वविद्यालय के ऐतिहासिकता पर चर्चा करते हुये कहा कि इस विश्वविद्यालय में प्रारम्भ काल स ही देश विदेश के छात्र अध्ययन एवं अनुसंधान के लिये आते रहे है आज भी दर्जनों विदेशी छात्र शोध कार्य में संलग्न है। भारत वर्ष में संस्कृत विधाओं के संरक्षण एवं प्रचार-प्रसार हेतु स्थापित यह प्राचीनतम शिक्षा का केन्द्र है।

यह विश्वविद्यालय ज्ञान का केन्द्र ही नहीं अपितु भारतीय संस्कृति का दर्पण, भारत की दर्शन, भाषा और परम्परा का संरक्षण एवं संवर्धन कर महान ध्येय लेकर अपने साथ चलने वाला एक ऐसा संस्थान है जहाँ ज्ञान-विज्ञान की सुदीप परम्परा आज भी जीवित है। उन्होंने विश्वविद्यालय के मेडल एवं उपाधिधारक छात्र व छात्राओं को बधाई देते हुये कहा कि यह व्यैक्तिक, शैक्षणिक उपलब्धियों का उत्सव नहीं बल्कि यह भारत की गौरवशाली बौद्धिक परम्परा को समर्पित महान संस्था की विरासत का भी उत्सव है।

डिजी लॉकर के माध्यम से कुलाधिपति महोदया के समक्ष उपाधियों का प्रदर्शन किया गया। डिजी लॉकर में सभी 11477 मध्यमा से लेकर आचार्य (विद्यावारिधि) उपाधियों को ऑनलाइन अपलोड किया गया है. अब घर बैठे अपने समस्त अंक पत्र एवं प्रमाण पत्र ऑनलाइन माध्यमों से प्राप्त कर सकते हैं। विश्वविद्यालय के सिस्टम एनालिस्ट मोहित मिश्रा ने प्रजेंटेशन दिया व डिग्री डाटा को पोर्टल पर अपलोड किया। डिजी लॉकर के प्रदेश समन्वयक प्रशान्त दीक्षित ने युनीकोड संस्कृत निष्ठ डिग्रियों अपलोड कराने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

महामहिम कुलाधिपति के द्वारा 36 मेधावियों को विभिन्न प्रकार 58 मेडल (पदक) देकर सम्मानित किया गया। महामहिम कुलाधिपति के हार्थों से पदक प्राप्त कर मेधावियों (छात्र छात्राओं) में अतिउत्साहित एवं हर्षित हुये।

महामहिम कुलाधिपति साररा की सत्प्रेरणा एवं श्रीमान पितृसत्ता के निर्देशानुसार विश्वविद्यालय गोद ले गए 05 गांव (मुनारी, तिवारीपुर, गोपपुर, भोपापुर एवं गुरवट) के विद्वान एवं अग्निवाणी की प्रतिभा पर आधारित विभिन्न (चित्रकला, निबंध ग्रंथ, कठोपथन) पार्टी में विशेष रूप से चित्रा प्रतियोगिता में अनुभव कुमार, अंश राजभर, ईशान डियाक, ख्यात मिर्ज़ा साहेब, प्रतिष्ठित ख्यातनाम राजवंश, सिमरन, प्रतिष्ठित कहानियां। गुप्ता, यश कुमार मौर्य, सोनाली कुमारी, आयुष राज प्रजापति को पदच्युत कर दिया गया। इसके साथ ही पांचवे क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालयों के विद्यार्थियों को भी कुलाधिपति द्वारा सारस्वत उपहार एवं स्मृति चिह्न भी दिया गया। इस अवसर पर प्राथमिक विद्यालय मुनारी के छात्र अनमोल यादव द्वारा पर्यावरण संरक्षण पर हिंदी में भाषण और सिक्किम सिमरन राजभर द्वारा संस्कृत में भाषण दिया गया। जिससे प्रभावित होकर कुलाधिपति साररा के द्वारा चाकलेट का पिट्ठू भेट किया गया। प्रतियोगिता में विजयी छात्र छात्राओं को बैग, किताबें और अन्य पाठ-पाठ सामग्री एवं प्रमाण पत्र कुलाधिपति सार द्वारा दिया गया। प्राइमरी स्कूल मुनारी के ‍वैडिला कनाकलता सिंह को कुलाधिपति ने सम्मान स्वरूप उपहार प्रदान किए। प्रतियोगिता के अंतिम मंडल में प्रो0 दिनेश कुमार गर्ग, प्रो0 विद्या कुमारी चन्द्रा, डॉ0 कुमार शर्मा एवं संबंधित विद्यालय के शिष्या विजय शामिल थे।

विश्ववि‌द्यालय के कुलपति महोदय के अनुरोध पर महामहिम कुलाधिपति महोदया के द्वारा सोनभद जनपद के जिलाधिकारी एवं राजभवन के सहयोग से ऑगनवाणी कार्यकत्रियो को खिलैने, टेबुल, कुर्सी, चार्ट और पुस्तकें, साइकिल और सिलाई किट्स आदि का वितरण महामहिम द्वारा किया गया।

इस अवसर पर ऑगनवाणी कार्यकत्री सुषमा, साधना विश्वकर्मा, ममता पाठक, प्रतिमा देवी एवं दीप्ती सिंह को और दानदाता अल्ट्राटेक सिमेन्ट के बन्ने सिंह राठौर एवं रोहित श्रीवास्तव, नार्दन कोल इण्डिया के सचिन कुमार एवं दिनेश कुमार, विरला कार्बन के निवेदिता मुखर्जी एवं स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया के सौरभ श्रीवास्तव और संतोष कुमार को स्मृति चिन्ह देकर महामहिम के द्वारा सम्मानित किया गया।

 

 

 

विश्ववि‌द्यालय के 43वें दीक्षान्त समारोह में कुल 36 मेधावियों को 58 पदक मा० कुलाधिपति महोदया के द्वारा प्रदान किया गया। कुलसचिव राकेश कुमार के द्वारा उपाधिधारक छात्र छात्रओं का उपस्थापन किया गया। दीक्षान्त समारोह में 11477 उपाधियाँ प्रदान की गयी। कार्यकम का प्रारम्भ पौराणिक एवं वैदिक मंगलाचरण से किया गया।

राष्ट्रगान, वैदिक एवं पौराणिक मंगलाचरण तथा कुलगीत विश्वविद्यालय के संगीत विभाग के छात्र व छात्राओं द्वारा प्रस्तुत किया गया।

*अनुशासन पाठ*-कुलपति द्वारा विश्ववि‌द्यालय के लिए अनुशासन का पाठ पढाया गया।

कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा के द्वारा स्वागत भाषण- कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा के द्वारा मंच पर आसीनअतिथियों को एकल पुष्प, अंगअस्त्र एवं स्मृति चिन्ह देकर स्वागत और अभिनंदन करते हुए अपने स्वागत भाषण में कहा कि यह संस्थान भारतीय ज्ञान परम्परा के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है जैसे कि स्वाहाकार, विश्व कल्याण यज्ञ, दुर्लभ पाण्डुलिपियों और सांस्कृतिक परम्पराओं का संरक्षण किया जा रहा है। सदैव इस विश्वविद्यालय द्वारा संस्कृत, संस्कृति एवं संस्कार को वैश्विक पटल पर स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है।

धन्यवाद ज्ञापन विश्ववि‌द्यालय के कुलपति प्रो० बिहारी लाल शर्मा ने सभी सम्मानित उपस्थित जनों का आभार एवं धन्यवाद ज्ञापित किया।संचालन डॉ० रविशंकर पाण्डेय ने किया।

समारोह में केन्द्रीय उच्च तिब्बतीय संस्थान, सारनाथ के कुलपति प्रो० वड्चुझ दोर्ज नेगी, पूर्व कुलपति प्रो. पृथ्वीश नाग, मेयर श्री अशोक कुमार तिवारी, पद्मभूषण प्रो० देवीप्रसाद द्विवेदी, प्रो. रामपूजन पाण्डेय, प्रो० जितेन्द्र कुमार, प्रो० रजनीश कुमार शुक्ल, प्रो. महेन्द्र पाण्डेय, प्रो० राजनाथ, प्रो० शम्भूनाथ शुक्ल, प्रो० विधु द्विवेदी, प्रो० नीलम गुप्ता, प्रो० दिनेश कुमार गर्ग, प्रो० अमित कुमार शुक्ल, प्रो० विजय कुमार पाण्डेय, प्रो० शैलेश कुमार मिश्र, प्रो० सुधाकर मिश्र, परीक्षा नियंत्रक श्री दिनेश कुमार एवं कार्य परिषद्‌ विद्या परिषद् के सम्मानित सदस्य सहित विश्ववि‌द्यालय के अधिकारी एवं कर्मचारी सहित छात्र एवं छात्रायें उपस्थित थे।

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